समरेंद्र सिंह लिखते हैं कि एनडीटीवी उन 'स्वर्णिम दिनों' में यूपीए सरकार के मंत्रियों के अच्छे और बुरे कामकाज पर स्टोरी चला रहा था, लेकिन मनमोहन सिंह की फटकार के बाद खराब प्रदर्शन वाली स्टोरी बुलेटिन से हटा दी गई।
मीडिया की आजादी पर तथाकथित अंकुश के वामदलों और कांग्रेस के आरोपों के बीच एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इसमें दावा किया गया है कि कैसे यूपीए सरकार के समय खबरों को लेकर मीडिया पर दबाव बनाया जाता था। यह खुलासा किया है एनडीटीवी के पूर्व पत्रकार समरेंद्र सिंह ने। उन्होंने अपने एक फेसबुक पोस्ट में पूरे ब्यौरे के साथ बताया है कि कैसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की फटकार के बाद एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय ने सरकार से जुड़ी एक खबर बुलेटिन से हटवा दी थी। यह खुलासा इसलिए भी अहम है कि मीडिया का एक धड़ा इन दिनों मोदी सरकार पर हस्तक्षेप के आरोप लगा रहा है। साथ ही यह दावा कर रहा है कि पहले ऐसी परिस्थितियां नहीं थीं।
समरेंद्र अपनी पोस्ट में लिखते हैं, 'इन दिनों टीवी के दो बड़े पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी और रवीश कुमार अक्सर ये कहते हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से चैनल के मालिकों और संपादकों के पास फोन आता है और अघोषित सेंसरशिप लगी हुई है। मैं 13 साल पुरानी कहानी बताना चाहता हूं, जब सबसे उदार और कमजोर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सत्ता में थे।'
समरेंद्र के मुताबिक, 'करीब नौ साल बाद 2014 में जब मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब “द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर” बाजार में आई तो पता चला कि आखिर डॉ. प्रणय रॉय ने ऐसा क्यों किया था। पेज नंबर 97 में संजय बारू ने बताया है कि अब तक के सबसे अधिक उदार और कमजोर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फोन करके एनडीटीवी के ताकतवर पत्रकार मालिक डॉ प्रणय रॉय को ऐसी झाड़ पिलाई कि उनकी सारी पत्रकारिता धरी की धरी रह गई। खुद प्रणय रॉय के मुताबिक मनमोहन सिंह ने उन्हें कुछ ऐसे झाड़ा था जैसे कोई टीचर किसी छात्र को झाड़ता है।'
समरेंद्र की यह पोस्ट उस धारणा को तोड़ती है, जिसे यह कहते हुए मजबूती दी जा रही है कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में पीएमओ एकतरफा व्यवहार कर रहा है, जबकि सोनिया-मनमोहन का कार्यकाल अच्छा था। समरेंद्र लिखते हैं, 'अगर कोई पत्रकार यह कह रहा है कि पीएमओ की तरफ से अचानक फोन आने लगा है तो उसकी दो ही वजहें हो सकती हैं, पहली यह कि वह पत्रकार किसी भी चैनल में कभी ऐसे जिम्मेदार संपादकीय पद पर नहीं रहा जिससे कि सरकारी नुमाइंदे उसे फोन करते और दूसरी यह कि वह पत्रकार खुद किसी बड़े सियासी खेल का हिस्सा है और उसी के तहत एक सामान्य बात को असामान्य तौर पर प्रचारित कर रहा है।'
Last Updated Sep 19, 2018, 9:28 AM IST