प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल के अंतिम 'मन की बात' कार्यक्रम में पद्म पुरस्कारों का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने पद्म सम्मान ऐसे लोगों को देने का प्रयास किया है, जो मीडिया की चर्चा में नहीं होते, बल्कि नाम की परवाह किए बगैर जमीनी स्तर पर काम करते हैं।

पीएम मोदी ने कहा, हर साल की तरह इस बार भी पद्म अवार्ड को लेकर लोगों में बड़ी उत्सुकता थी। आज हम एक न्यू इंडिया की ओर अग्रसर हैं। इसमें हम उन लोगों का सम्मान करना चाहते हैं जो जमीनी स्तर पर अपना काम कोई हानि-लाभ सोचे बगैर कर रहे हैं। अपने परिश्रम के बल पर अलग-अलग तरीके से दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं।दरअसल वे सच्चे कर्मयोगी हैं, जो जनसेवा, समाजसेवा और इन सबसे से बढ़कर राष्ट्रसेवा में निःस्वार्थ जुटे रहते हैं। आपने देखा होगा जब पद्म अवार्ड की घोषणा होती है तो लोग पूछते हैं कि ये कौन है ? एक तरह से इसे मैं बहुत बड़ी सफलता मानता हूँ क्योंकि ये वो लोग हैं जो टीवी, मैगजीन या अखबारों के फ्रंट पर नहीं हैं। ये चकाचौंध की दुनिया से दूर हैं, लेकिन ये ऐसे लोग हैं, जो अपने नाम की परवाह नहीं करते बस जमीनी स्तर पर काम करने में विश्वास रखते हैं। 

पीएम ने कहा, ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ गीता के संदेश को वो एक प्रकार से जीते हैं। मैं ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में आपको बताना चाहता हूं। ओडिशा के दैतारी नायक के बारे में आपने जरुर सुना होगा उन्हें ‘कैनाल मैन ऑफ द ओडिशा’ यूं ही नहीं कहा जाता, दैतारी नायक ने अपने गांव में अपने हाथों से पहाड़ काटकर तीन किलोमीटर तक नहर का रास्ता बना दिया। अपने परिश्रम से सिंचाई और पानी की समस्या हमेशा के लिए ख़त्म कर दी। गुजरात के अब्दुल गफूर खत्री को ही लीजिए, उन्होंने कच्छ के पारंपरिक रोगन पेंटिंग को पुनर्जीवित करने का अद्भुत कार्य किया। वे इस दुर्लभ चित्रकारी को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का बड़ा कार्य कर रहे हैं। अब्दुल गफूर द्वारा बनाई गई ‘ट्री ऑफ लाइफ’  कलाकृति को ही मैंने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को उपहार में दिया था। 

प्रधानमंत्री ने कहा, पद्म पुरस्कार पाने वालों में मराठवाड़ा के शब्बीर सैय्यद गौ-माता के सेवक के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने जिस प्रकार अपना पूरा जीवन गौमाता की सेवा में खपा दिया ये अपने आप में अनूठा है। मदुरै के चिन्ना पिल्लई वही शख्सियत हैं, जिन्होंने सबसे पहले तमिलनाडु में कलंजियम आंदोलन के जरिये पीड़ितों और शोषितों को सशक्त करने का प्रयास किया। साथ ही समुदाय आधारित लघु वित्तीय व्यवस्था की शुरुआत की। अमेरिका की ताओ पोरचोन लिंच के बारे में सुनकर आप सुखद आश्चर्य से भर जाएंगे। लिंच आज योग की जीती-जागती संस्था बन गई है। सौ वर्ष की उम्र में भी वे दुनिया भर के लोगों को योग का प्रशिक्षण दे रही हैं और अब तक डेढ़ हज़ार लोगों को योग शिक्षक बना चुकी हैं। झारखंड में ‘लेडी टॉर्जन’ के नाम से विख्यात जमुना टुडू ने टिम्बर माफिया और नक्सलियों से लोहा लेने का साहसिक काम किया उन्होंने न केवल 50 हेक्टेयर जंगल को उजड़ने से बचाया बल्कि दस हज़ार महिलाओं को एकजुट कर पेड़ों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया। ये जमुना जी के परिश्रम का ही प्रताप है कि आज गांववाले हर बच्चे के जन्म पर 18 पेड़ और लड़की की शादी पर 10 पेड़ लगाते हैं। 

पीएम ने कहा, गुजरात की मुक्ताबेन पंकजकुमार दगली की कहानी आपको प्रेरणा से भर देगी, खुद दिव्यांग होते हुए भी उन्होंने दिव्यांग महिलाओं के उत्थान के लिए जो कार्य किए, ऐसा उदाहरण मिलना मुश्किल है। चक्षु महिला सेवाकुंज नाम की संस्था की स्थापना कर वे नेत्रहीन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के पुनीत कार्य में जुटी हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर की किसान चाची, यानि राजकुमारी  देवी की कहानी बहुत ही प्रेरक है। महिला सशक्तिकरण और खेती को लाभकारी बनाने की दिशा में उन्होंने एक मिसाल पेश की है। किसान चाची ने अपने इलाके की 300 महिलाओं को ‘स्वयं सहायता समूह’  से जोड़ा और आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गांव की महिलाओं को खेती के साथ ही रोज़गार के अन्य साधनों का प्रशिक्षण दिया। खास बात यह है कि उन्होंने खेती के साथ तकनीक को जोड़ने का काम किया।

उन्होंने कहा, शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि इस वर्ष जो पद्म पुरस्कार दिए गए उसमें 12 किसानों को पद्म पुरस्कार मिले हैं। आमतौर पर कृषि जगत से जुड़े हुए बहुत ही कम लोग और प्रत्यक्ष किसानी करने वाले बहुत ही कम लोग पद्मश्री की सूची में आये हैं। ये अपने आप में, ये बदलते हुए हिन्दुस्तान की जीती-जागती तस्वीर है।