माओवादी बच्चों को आत्मघाती हमलावर बनने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। इसके लिए बच्चों का एक नया बैच तैयार किया गया है। स्थानीय इनपुट के मुताबिक, माओवादियों ने श्रीलंका के आतंकी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) की तर्ज पर बच्चों को आत्मघाती हमलावर के रूप में इस्तेमाल करने की रणनीति बनाई है। 

एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों से गायब हुए कुछ बच्चों को माओवादी प्रभाव वाले इलाकों में ले जाया गया है। एक संयुक्त दल इन बच्चों को निकालने का प्रयास कर रहा है।  

इस ऑपरेशन में शामिल सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'हमें ऐसे इनपुट मिले हैं, जिनके अनुसार इन बच्चों को आईईडी (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेज) का इस्तेमाल करना सिखाया जा रहा है। हाल ही में उन्हें माओवादियों के प्रभाव वाले इलाके में ले जाया गया है। बच्चों को निकालने के लिए एक संयुक्त टीम की ओर से अभियान शुरू किया गया है।'

सरकारी डाटा के अनुसार, एक साल में एक लाख से ज्यादा बच्चे गायब हुए हैं। साल के अंत तक 50% से ज्यादा के बारे में कुछ पता नहीं लग पाया। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि माओवादी विशेष रूप से झारखंड और छत्तीसगढ़ में बच्चों को अपने संगठनों में भर्ती कर रहे हैं। 

इस साल जून में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में माओवादियों ने बच्चों को ले जाने के लिए लॉटरी सिस्टम फिर से शुरू कर दिया है। वहीं, वामपंथी उग्रवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान में बच्चों के मारे जाने और घायल होने का सिलसिला जारी है। 

अधिकारी ने बताया, 'आत्मघाती हमलों के लिए प्रशिक्षण को लाए गए नए बैच में बच्चों की संख्या 12 के आसपास बताई जा रही है। छत्तीसगढ़ और झारखंड की सीमा से सटे राज्यों से अगवा किए गए इन बच्चों को पहले कुछ महीने तक छुपाकर रखा गया और अब उन्हें प्रशिक्षण के लिए यहां लाया गया है।'

इन बच्चों को प्रशिक्षण देने के लिए माओवादियों ने कुछ उपकरणों का आयात भी किया है। हाल ही में छत्तीसगढ़ पुलिस ने सात विदेशी टेलीकोपिक उपकरण बरामद किए हैं। इनमें बंदूक के ऊपर लगाया जाता है, ताकि निशाना साफ देखा जा सके। 

श्रीलंका में उग्रवादी संगठन लिट्टे ने सबसे पहले बच्चों के हाथ में ग्रेनेड और हथियार थमाए थे। लिट्टे बच्चों का अपहरण करता था। परिवारों को धमकी देकर हजारों बच्चों को अपने संगठन में शामिल करवाता था।