केन्द्र सरकार के सवर्ण वर्ग के गरीबों को आरक्षण देने के केन्द्र सरकार के फैसले के बाद बसपा सक्रिय हो गयी है. लिहाजा बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्य के बड़े नेताओं को दिल्ली तलब किया. ताकि केन्द्र के इस फैसले से पड़ने वाले असर पर आगे की रणनीति बनाई जा सके. इसके साथ ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव के खिलाफ सीबीआई की संभावित कार्यवाही पर चर्चा की जा सके.

पिछले दिनों में यूपी की राजनीति गर्मा गयी है. शुक्रवार को यूपी में हुए अवैध खनन के मामले में हमीरपुर की जिलाधिकारी बी. चंद्रकला और सपा नेताओं के घर पर सीबीआई ने छापे मारे थे. ये छापे हाईकोर्ट के आदेश के बार मारे गए हैं. राज्य में सपा सरकार के दौरान हुए अवैध खनन के वक्त अखिलेश यादव इस विभाग के प्रभारी मंत्री थे. हालांकि बाद में ये विभाग गायत्री प्रसाद प्रजापति को दे दिया.

लिहाजा विभाग के मुखिया होने के नाते उन पर सीबीआई का दबाव है. हालांकि ऐसा माना जा रहा कि सीबीआई के दबाव का सपा और बसपा के गठबंधन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. फिर भी मायावती राज्य के हालत पर चर्चा करना चाहती है. इसके साथ ही सोमवार को गरीब सवर्णों के आरक्षण के फैसले के बाद सभी राजनैतिक दलों पर दबाव पड़ गया है कि वह सदन में इसे पारित करने में सहयोग दें. हालांकि बसपा पहले ही गरीब सवर्णों को आरक्षण देने के पक्ष में रही है. क्योंकि जब कि राज्य में सवर्णों ने बसपा को वोट दिया है. तो उसकी राज्य में सरकार बनी है.

लिहाजा अब बसपा प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनाव पर जरूरी चर्चा के लिए पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली बुलाया है. बहरहाल बसपा प्रमुख मायावती ने यूपी में गठबंधन की तस्वीर लगभग साफ कर दी है, लेकिन कौन कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगा यह पुरी तरह से साफ नहीं है, लिहाजा इस बैठक में इस बात पर भी चर्चा की जाएगी. हालांकि सपा और बसपा के बीच गठबंधन की बात तो साफ हो गयी है और सोमवार को ही सपा महासचिव रामगोपाल यादव और बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने दिल्ली में एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर भाजपा पर सीबीआई का दुरूपयोग करने का आरोप लगाया.

उधर अभी तक दोनों पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा अभी किया जाना बाकी है. मायावती यूपी के बाद अब लोकसभा चुनाव के लिए अन्य राज्यों में संभावनाएं टटोलने में जुट गई हैं. मायावती तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली आंशिक सफलता से उत्साहित हैं. लिहाजा वह अलग-अलग राज्यों में सामान विचारधारा वाली क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन कर चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं.