नई दिल्ली – भारत में पहली बार चर्च सरकार के निशाने पर आया है। माय नेशन ने पिछले दिनों एक कैथोलिक शिक्षण संस्थान द्वारा झारखंड के ग्रामीण इलाकों में बड़े जमीन घोटाले का राज खोला था। यह मामला आदिवासी बहुल सिमडेगा जिले का है, जहां चर्च के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई शुरु हो गई है। 

सिमडेगा में कैथोलिक डायोसेसन एजुकेशनल सोसायटी ने आदिवासियों की 20 एकड़ जमीन अवैध तरीके से खरीदी। इसके लिए एफसीआरए के पैसे का इस्तेमाल किया गया और कई सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाई गई। सरकार ने सोमवार को यह डील कैंसिल करके जमीन वापसी की प्रक्रिया शुरु कर दी  है। 

मामले में माय नेशन की पुरानी रिपोर्ट देखने के लिए यहां क्लिक करें: झारखंड में जमीन घोटाले के आरोप में कैथोलिक सोसायटी पर निगाह

इस संस्था ने विवादित जमीन के एक हिस्से पर सिमडेगा का बिशप हाउस बनवाया था। जिले के राजस्व अधिकारी ने बताया है, कि इसे भी वापस ले लिया जाएगा।    

जिलाधिकारी जटाशंकर चौधरी ने माय नेशन को बताया कि कार्रवाई की शुरुआत हो चुकी है- ‘एक शिकायत मिलने के बाद हमने जांच शुरु कर दी और जमीन के दस्तावेज मंगाए। हमने पाया कि इस मामले में कई जगहों पर नियमों का पालन नहीं किया गया है। यह रिपोर्ट झारखंड राज्य के मुख्य सचिव को भेज दी गई है। राजस्व विभाग के क्षेत्राधिकारी को सोसायटी के खिलाफ प्राथमिक कार्रवाई करने का आदेश दे दिया गया है।’  

जिलाधिकारी ने आगे बताया, कि यह रिपोर्ट क्रिमिनल इंवेस्टीगेशन डिपार्टमेन्ट यानी सीबीआई को भी सौंपी गई है।  
[एफसीआरए का अर्थ है, फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट]

 दिलचस्प बात ये है, कि इस संस्थान से पहले भी 40 हजार करोड़ के एफसीआरए(FCRA) फंड के बारे में पूछताछ हो चुकी है।

इस रिपोर्ट की बात छोड़ भी दें, तो सिमडेगा के एक सामाजिक कार्यकर्ता विनय जोशी ने डिप्टी कमिश्नर के पास शिकायत दर्ज कराई थी, जो कि लीगल राइट ऑब्जरवेटरी नाम का संगठन चला है। 

हालांकि हमारी बहुत कोशिशों के बावजूद आरोपी सोसायटी से संपर्क नहीं हो पाया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सिमडेगा कैथोलिक डायोसेसन शिक्षण सोसायटी ने छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट(CNT) का उल्लंघन किया है। इस संस्था ने फर्जी और गलत तरीके से अहस्तांतरणीय जमीन को संस्था से जुड़े 27 चर्चों के पादरियों के नाम कर दिया। यही नहीं इस मामले में अवैध तरीके से जमीन की खरीद बिक्री की वजह से सरकार को टैक्स का भी भारी नुकसान हुआ है।

खुफिया विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, सीएनटी एक्ट के सेक्शन 40 के मुताबिक अस्पताल, ट्रस्ट, सोसायटी, स्कूल और कॉलेज के नाम से जमीन नहीं खरीदी जा सकती है। इसलिए जमीन की यह डील और उसे छोटे टुकड़े करके 27 पादरियों के नाम किए जाने की यह प्रक्रिया गैरकानूनी है। 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, कि ‘इसमें सीएनटी एक्ट की सेक्शन 46 का भी उल्लंघन हुआ है। जिसमे कहा गया है कि जमीन खरीदने वाला और बेचने वाला दोनो का निवास एक ही थाने के अंतर्गत होना चाहिए, जहां जमीन की डील की जा रही है’। लेकिन इस मामले में नियमों के खिलाफ सभी पादरियों का स्थायी पता उस थाना क्षेत्र के बाहर का है जहां जमीन खरीदी गई।

इस गोपनीय रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, कि सिमडेगा का बिशप हाउस उसी जमीन के टुकड़े पर बना हुआ है। लेकिन इसकी रजिस्ट्री के कागजात किसी ट्रस्ट,सोसायटी या संस्थान के नाम पर नहीं है। ‘इस बात से संबंधित कोई दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं है, कि यह जमीन इसे खरीदने वाले 27 पादरियों द्वारा दान में दी गई है’।

यह रिपोर्ट यह भी इशारा करती है कि जमीन की रजिस्ट्री में बेहद जल्दबाजी की गई। ‘जमीन की रजिस्ट्री के दौरान एक जोड़े के अलावा इन 27 लोगों में से किसी ने भी खुद दस्तखत नहीं किया। पूरा लेन-देन दो दिनों के अंदर पूरा कर लिया गया’।   

इस रिपोर्ट में पादरियों की आय के स्रोत पर भी सवाल उठाया गया है। ‘क्योंकि इन सभी की आय का स्रोत जमीन की खरीद में हुए पैसों के लेन-देन से मेल नहीं खा रहा है’। आखिर इसके लिए पैसे कहां से आए। और क्यों यह जमीन उन पादरियों के कब्जे में न होकर संस्था के कब्जे में है। रिपोर्ट में इस बात का विशेष रुप से उल्लेख किया गया है।  

इस जमीन के बगल के प्लॉट नंबर 3700, 3701, 3702 और 392 की भी घेराबंदी कर ली गई है, जो कि सरकारी जमीन है।

इस लैंड डील से रेवेन्यू अधिकारियों की सांठ-गांठ का भी खुलासा होता है। जिन्होंने सरकार नियमों को ताक पर रखकर सरकार द्वारा तय की गई जमीन की कीमत के साथ साथ कोर्ट फीस और स्टांप ड्यूटी को भी नजर अंदाज कर दिया।