अदालत के आदेश को गलत ढंग से पेश करने को चुनाव प्रचार का भ्रष्ट तरीका करार देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है। 

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि चुनाव आयोग को यह अधिकार दिया जाए कि वह जाति, धर्म, भाषा या समुदाय के आधार पर वोट मांगने वाले उम्मीदवार का नामांकन रद्द कर सके और संबंधित राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म कर सके। साथ ही ऐसे मामलों की उचित एजेंसी से जांच कराने की मांग की गई है। 

याचिका में बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा पिछले सात अप्रैल को गठबंधन की संयुक्त रैली के दौरान मुस्लिम समुदाय से उनके उम्मीदवार को वोट करने की अपील और 10 अप्रैल को राफेल सौदे मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत ढंग से पेश करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर की गई टिप्पणी का भी जिक्र किया गया है। 

याचिका में यह भी कहा गया है कि जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123(3) कहती है कि जाति, धर्म, समुदाय और भाषा आदि के नाम पर वोट मांगने और दो समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाने को चुनाव का भ्रष्ट तरीका माना जाएगा, लेकिन इसे केवल चुनाव याचिका के जरिये ही मुद्दा बनाया जा सकता है। इस तरह के मामले में भले ही चुनाव आचार संहिता लागू हो फिर भी चुनाव आयोग जांच के आदेश नहीं दे सकता है। 

इतना ही नहीं, याचिका में कहा गया है कि कानून में हारने वाले उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव के लिए भ्रष्ट तरीका अपनाने को चुनौती देने का कोई प्रावधान नही है। याचिका में चुनाव सुधार के लिए गोस्वामी कमेटी और विधि आयोग की सिफारिशों का भी जिक्र किया गया है। 

पिछले हप्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए राहुल से राफेल मामले में कोर्ट के आदेश को गलत ढंग से पेश करने पर सफाई मांगी गई है।