केंद्र की मोदी सरकार अंग्रेजों की बनाई गयी 152 साल पुरानी परंपरा को तोड़ने की तैयारी में है. मोदी सरकार बजट के लिए ब्रिटिश नियम को बदलने की योजना बना रही है. इस योजना के मुताबिक बजट को मार्च के बजाए नवंबर के अंत या फिर दिसंबर की शुरूआत में पेश कर दिया जाएगा. यानी वित्तीय वर्ष अप्रैल के बजाय जनवरी से शुरू होगा. 

केन्द्र की मोदी सरकार लीक से हटकर और कड़े कदम उठाने के लिए जानी जाती है. अब इसी कड़ी में मोदी सरकार देश के वित्तीय सत्र को भी बदलने जा रही है. अगर सबकुछ ठीकठाक रहा तो अगले साल यानी 2020 से वित्तीय वर्ष की शुरूआत 1 जनवरी से शुरू होगा और बजट दिसंबर तक संसद में पेश कर दिया जाएगा. अगर केन्द्र सरकार इसे लागू कर देती है तो ये 152 साल पुरानी परंपरा का आखिरी साल होगा. सरकार इसकी तैयारी है. ब्रिटिश समय 1867 से ही मार्च में बजट पेश किया जाता है और उसी आधार पर कंपनियां भी तीमाही रिजल्ट को जारी करती हैं.लेकिन अब केन्द्र सरकार इस परंपरा को बदलना चाहती है और इसके तहत बजट को नवबंर के अंत तक पेश किया जाएगा और इसकी तैयारी नंबर से शुरू हो जाएंगी. जानकारी के मुताबिक, इस बजट में सरकार इसकी घोषणा कर सकती है. 

ऐसा माना जा रहा है कि इससे आम लोगों को ज्यादा दिक्कत नहीं होगी. अगर वित्त वर्ष की तारीख में बदलाव होता है तो इससे आम आदमी की जिंदगी पर बहुत ज्यादा असर नहीं होगा, सिर्फ टैक्स प्लानिंग, टैक्स फाइलिंग, कंपनियों के तिमाही नतीजों और शेयर बाजार के लिए वेस्टर्न स्टॉक मार्केट के जैसा पैटर्न और चलन दिखने की उम्मीद है. बजट प्रक्रिया को पूरा करने में दो माह का समय लगता है. ऐसे में बजट सत्र की संभावित तारीख नवंबर का पहला सप्ताह हो सकती है. भारत में वित्त वर्ष एक अप्रैल से 31 मार्च तक होता है. उधर नीति आयोग भी इसके पक्ष में है और आयोग का मानना है कि मौजूदा प्रणाली में कामकाज के सत्र का उपयोग नहीं हो पाता वहीं संसद की वित्त पर स्थायी समिति ने भी वित्त वर्ष को स्थानांतरित कर जनवरी-दिसंबर करने की सिफारिश की थी.