पूर्वोत्तर राज्यों के भारी विरोध के बाद आज केन्द्र की मोदी सरकार नागरिकता संशोधन बिल राज्यसभा में पेश करेगी। पिछले महीने ही ये बिल लोकसभा में पारित हुआ है। जिसके बाद पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध शुरू हो गया था। इस बिल में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दिए जाने की बात कही गई है।

आज केन्द्र सरकार राज्यसभा में इस बिल को पेश करेगी। हालांकि राज्यसभा में भाजपा के पास पूरा बहुमत नहीं है। फिर भी उसकी कोशिश है कि वह सहयोगी दलों के साथ ही अन्य दलों से इसके लिए मदद लेकर इस पारित कर कानून बनाए। हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों में इस बिल को लेकर विरोध चल रहा है। लेकिन मोदी सरकार इस बिल को पास कराना चाहती है। केन्द्र सरकार ने 8 जनवरी को ही इस बिल को लोकसभा से पारित कराया है। दिलचस्प ये ही इस बिल का विरोध न केवल विपक्षी दल ही कर रहे हैं बल्कि भाजपा शासित पूर्वोत्तर के दो राज्य अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी भाजपा सरकारें नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रही हैं।

कल इस सिलसिले में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने बैठक की। बैठक में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अनुरोध किया कि ये विधेयक राज्यसभा से पारित न करे। लेकिन गृहमंत्री न उन्हें आश्वस्त किया कि पूर्वोत्तर के स्वदेशी लोगों के अधिकार इस बिल के लागू होने के बाद प्रभावित नहीं होंगे। 

इस बिल के मुताबिक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन कर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता दिए जाने की बात कही गई है। इस बिल के कानून बनने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को महज छह साल भारत में रहने पर नागरिकता मिल जाएगी।  जबकि पहले ये नियम 12 साल का था। असल में लोगों का कहना है कि इस लोगों को नागरिकता मिलने के बाद उनकी सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत खत्म होने लगेगी।