संकट के दौर से गुजर रही जेट एयरवेज के प्रमुख नरेश गोयल ने इस्तीफा दे दिया है। हालांकि जेट संकट ही नहीं एक और कंपनी ने कभी नरेश गोयल का पीछा नहीं छोड़ा। यह थी ‘डी कंपनी’। जेट एयरवेज के अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम से रिश्ते मीडिया की सुर्खियों में रहे हैं।  पत्रकार जोसी जोसेफ ने अपनी किताब ‘ए फीस्ट ऑफ वल्चर्स’ में इन कथित संबंधों का जिक्र किया है। हालांकि किताब में किए दावों को लेकर नरेश गोयल ने जोसेफ पर 2000 करोड़ रुपये का मानहानि दावा भी किया था। 

दरअसल, यह सबकुछ चर्चा में तब आया जब गोयल की एयरलाइंस को मिडिल ईस्ट से संदिग्ध फंडिंग हुई। आरोप लगे कि ये पैसा अंडरवर्ल्ड डॉन ने लगाया है। बताया जाता है कि खुफिया ब्यूरो ने भी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम और नरेश गोयल की कॉल इंटरसेप्ट की थी। एक रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया कि पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को जब आईबी के प्रमुख ने इस संदिग्ध धन प्रवाह की जानकारी दी तो वह काफी नाराज हो गए। वह इस मामले में एक्शन चाहते थे। हालांकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। 

जोसेफ के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक संयुक्त निदेशक ने एक पत्र लिखकर गोयल के दाऊद से संबंधों की पुष्टि की थी।

जोसेफ लिखते हैं, ‘साल 2002 की बात है। आईबी के प्रमुख केपी सिंह और उनके वरिष्ठ साथी, संयुक्त निदेशक अंजन घोष नॉर्थ ब्लॉक की लिफ्ट से नीचे उतर रहे थे। जहां बेसमेंट में उनकी सरकारी गाड़ी खड़ी थी। वहीं से कुछ दूरी पर सर्कुलर बिल्डिंग में कुछ लोग घोष की ओर से कुछ महीने पहले लिखे गए एक पत्र को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। एक पेज का यह नोट केंद्रीय गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव संगीता गैरोला को लिखा गया था। इसमें कहा गया था कि एजेंसी के पास नरेश गोयल के अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा शकील और दाऊद इब्राहीम से संबंधों को लेकर पुख्ता जानकारी है। यह मामला वित्तीय मामलों को निपटाने से जुड़ा है।’

जोसेफ के मुताबिक, पत्र में कहा गया था, ‘नरेश गोयल के कुछ शेखों से दो दशकों से ज्यादा पुराने बिजनेस संबंध हैं। इनका इस्तेमाल कथित तौर पर न सिर्फ सीधे निवेश के लिए हो रहा है बल्कि बड़े पैमाने पर भारतीय काले धन का शोधन किया जा रहा है। इस पैसे को रीसाइकिल कर भारत में बिजनेस  में लगाया जा रहा है। इसमें से ज्यादातर पैसा तस्करी, उगाही और अवैध धंधों से कमाया गया है।’ 

साल 2002 की आउटलुक पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘जेट एयरवेज पहली बार साल 1993 में आईबी के रडार पर आई थी। उस समय एयरलाइन ने अपना संचालन शुरू ही किया था। 20 सितंबर, 2000 को गृह सचिव कमल पांडे ने विनिवेश मंत्री अरुण शौरी के एक अनुरोध (पत्र संख्या I-382/HS/2000)  को आईबी के तत्कालीन डायरेक्टर श्यामल दत्ता को अग्रसारित किया था। इसमें एयरलाइन के बारे में विस्तृत ब्यौरा जुटाने की बात कही गई थी। दत्ता ने 23 अक्टूबर, 2000 को दिए गए अपने जवाब (पत्र संख्या IV/8(121)/2001-1705) में खुफिया एजेंसी रॉ की पड़ताल का उल्लेख किया था। इसमें कहा गया था कि गल्फ एयर, कुवैत एयरवेज, बेल्जियम के कुछ हीरा व्यापारियों और कुछ भारतीयों की इस कंपनी में हिस्सेदारी है।’