नई दिल्ली: पुलवामा अटैक के बाद से जो रवैया मोदीजी ने बरकरार रखा है वो बिलकुल साफ़ है "नो टॉक्स विद टेरर"|  जहां एक तरफ विपक्ष लाशों की गिनती का सबूत मांगता रह गया वही देश की जनता ने अपने कर्मठ, जुझारू और साहसी प्रधानमंत्री की कथनी और करनी का सुदृढ़ उदाहरण देख लिया | 

जिसका नतीजा ये हुआ की अब जनता का मोदी सरकार पर भरोसा और बढ़ गया है और नतीजन 2019 की दौड़ में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में और उछाल आया है।

हालांकि ये पहली बार नहीं है जब विपक्ष ने बीजेपी को नीचा दिखाने और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे को राजनीतिक रंग देनी की कोशिश की है, इससे पहले भी जब भारत ने उरी अटैक के बाद सर्जिकल स्ट्राइक किया था तब विपक्षी दलों ने एक जुट होकर सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माँगा था | 

जहाँ एक तरफ बीजेपी के लिए शुरुआत से ही राष्ट्रवाद एक सोच रही है मुद्दा नहीं। वही कांग्रेस और विपक्षी दलों ने इससे बीजेपी की राजनीति और ध्रुवीकरण का हथकंडा बना दिया है।

 इस बार विपक्षी के कई नेताओ ने अपनी पार्टी के लिए नाउम्मीदी का गढ्ढा और गहरा कर दिया है जिसमें सबसे पहले नाम आता है नवजोत सिंह सिद्धू का।

 वैसे तो ये पहली बार नहीं है इससे पहले भी सिद्धू बीजेपी छोड़ने के बाद से ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुद्दे उठाते रहे हैं परन्तु इस बार सिद्धू शायद ये भूल गए थे की मुद्दा पाकिस्तान और आतंकवाद का है न की बीजेपी का। नतीजन सिद्धू को जनता ने खुद आड़े लेते हुए सोशल मीडिया पर जम के खरी खोटी सुनाई।

वही दूसरी ओर टीएमसी की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने तो सीधे तौर पर सेना और मोदी को ही चुनौती दे डाली।  ममता बनर्जी ने कहा कि " स्ट्राइक में मारे गए आतंकिओ की लाशो की गिनती सरकार बताये कोई एक भी अगर मारा गया हो तो।" 

देश ने ये भी पहली बार देखा जब एक सेना प्रमुख को मीडिया में आकर अपने शौर्य का सबूत सिर्फ  इसलिए देना पड़ा क्यूंकि विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मामलो पर राजनीति करने लगा और पाकिस्तान की जुबान में सबूत मांगने लगा लेकिन अब जनता ये समझ चुकी है  की पहले की सरकारों और नरेंद्र मोदी की सरकार में क्या अलग हो रहा है |

भारत के इतिहास में ये पहली बार है की किसी सत्तारूढ़ पार्टी ने पाकिस्तान के खिलाफ सिर्फ जुबानी जंग नहीं छेड़ी बल्कि कई कठोर फैसले भी किए। जिसके कुछ हालिया उदाहरण इस प्रकार हैं-  
1) पाकिस्तान का एमएफएन स्टेटस हटा दिया गया 
2) पाकिस्तान को टमाटर और अन्य निर्यात पर रोक 
3) पाकिस्तान से आयात पर भारी टैक्स
4) पाकिस्तान परस्त अलगावादियों की गिरफ़्तारी और उनकी सुरक्षा वापसी लेना 
5)  सेना को खुले तौर पर जवाबी कार्रवाई में कोई भी निर्णय लेने की छूट 
6) पांच साल में दो बार पाकिस्तान में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक 
7) अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के जरिए पाकिस्तान पर कड़ा दबाव 
8) पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर रोक 
9) रावी,व्यास,सतलुज नदियों के जल वितरण पर रोक  

जिसका नतीजा ये हुआ की पाकिस्तान के वज़ीरे आज़म को भारत से हाथ जोड़कर कड़ी कारवाही रोकने की गुहार लगानी पड़ी साथ ही साथ रिश्ते बहाल और शांति की भीख भी मांगनी पड़ी। लेकिन नरेंद्र मोदी  वो नेता है जिसने एक बार ठान ली तो बिना नतीजे के पीछे हटने का तो सवाल ही नहीं।

ये सोच और कारवाही भाजपा के लिए कोई चुनावी मुद्दा नहीं पर उसके आंतरिक राष्टवादी सोच का उदाहरण है।

जो कार्रवाई भारत को मुंबई अटैक के बाद करनी चहिये थी उसे कांग्रेस सरकार ने तत्कालीन वायु सेना प्रमुख के अनुरोध के बाद भी नहीं होने दिया और पाकिस्तान में बैठे आतंकी गुटों को इससे और हौसला मिल गया। 

यही नहीं कांग्रेस ने भारतीय सेना को 1960  के दशक के मिग 21 विमानों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर कर दिया। जिसके कारण हमारे कई जवान शहीद हो गए| 

2004 में जब वायु सेना प्रमुख ने कांग्रेस सरकार के सामने राफेल विमानों के खरीद की मांग रखी तो 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद भी कांग्रेस ने देश हित में एक भी राफेल विमान नहीं खरीदा।  जिसकी कीमत अभिनन्दन जैसे वीर सैनिक को 24 घंटे पाकिस्तान में रहकर और उसका टॉर्चर झेलकर चुकाना पड़ा।   

इस पूरे घटनाक्रम के बाद एक बात  तो साफ़ है की कांग्रेस ने राष्ट्र सुरक्षा को कभी वरीयता नहीं दी जिसके बुरे नतीजे मोदी सरकार को विरासत में मिले। 

 लेकिन नरेंद्र मोदी ने अपनी ईमानदार सोच और साहसी निर्णयों ने 5 साल में पाकिस्तान को लोहे के चने चबवा दिए जिससे ये जाहिर होता है की भाजपा के लिए राष्ट्र सुरक्षा और राष्ट्रवाद से बढ़कर कुछ नहीं वहीं विपक्ष चाहे कितना भी इसे मुद्दा बनाकर भाजपा पर आरोप लगाए, इतिहास गवाह है कि कश्मीर जो को एक भारत का एक हिस्सा था उसे विवाद का मुद्दा किसने बनाया ।