आमतौर पर राजनीतिक हलकों में ऐसी धारणा बनाने की कोशिश हो रही है कि मोदी सरकार रक्षा प्रोजेक्टों में उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी की मदद कर रही है। लेकिन इसके विपरीत निर्मला सीतारमण के नेतृत्व वाले रक्षा मंत्रालय ने रिलायंस के खिलाफ प्रोजेक्टों को समय पर पूरा करने में नाकाम रहने पर कड़ी कार्रवाई की है। इसमें नौसेना के लिए चार युद्धपोतों की आपूर्ति में चार साल से ज्यादा की देरी करने पर बैंक गारंटी जब्त करने जैसी कार्रवाई भी शामिल है। 

अक्सर कांग्रेस की ओर से मोदी सरकार पर रक्षा क्षेत्र में अनिल अंबानी की कंपनी की मदद करने का आरोप लगाया जाता है। कांग्रेस के मुताबिक, फ्रांस के साथ हुए राफेल लड़ाकू विमान सौदे में अनिल अंबानी की कंपनी को 30,000 करोड़ रुपये के ऑफसेट ठेके दिए गए हैं। 

हालांकि नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने अपनी सालाना नौसेना दिवस प्रेस कांफ्रेंस में इस तरह की धारणा को ध्वस्त कर दिया। उन्होंने कहा, 'नौसैन्य पोतों की आपूर्ति में देर करने पर रिलायंस की बैंक गारंटी को कैश करा लिया गया है। उसके खिलाफ कार्रवाई की गई है (पांच तटीय निगरानी पोतों की आपूर्ति समय पर न करने के लिए)। कहीं से भी इस तरह का दबाव नहीं था कि रिलायंस पर कार्रवाई न की जाए।'

नौसेना प्रमुख से पूछा गया था कि क्या अनिल अंबानी की कंपनी पर कार्रवाई न करने के लिए सरकार की ओर से कोई दबाव था। रिलायंस शिपयार्ड द्वारा बनाए जा रहे तटीय निगरानी पोतों की आपूर्ति में पहले ही चार साल की देरी हो चुकी है। 

सरकार के साथ अनुबंध की शर्तों को पूरा करने के लिए विक्रेताओं को बैंक गारंटी जमा करनी होती है।  अगर कंपनियां अपने वादे पूरे करने में नाकाम रहती हैं तो सरकार को पास यह अधिकार होता है कि वह इन बैंक गारंटी को दंड स्वरूप कैश करा ले। 

नौसेना प्रमुख ने कहा कि अनिल अंबानी की कंपनी कॉर्पोरेट कर्ज के पुनर्गठन (रीस्ट्रक्चरिंग) की प्रक्रिया से गुजर रही थी। उनके बैंकर्स कंपनी को कोर्ट में ले गए थे। 

रिलायंस की प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष भागीदारी वाले कई प्रोजेक्ट इस समय फंसे हुए हैं। इनमें 30,000 करोड़ रुपये का चार लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक की खरीद का सौदा भी शामिल है।