पिछले दिनों गिरफ्तार किए गए पांच शहरी नक्सलियों के पास से कई दस्तावेज बरामद हुए हैं। इन डॉक्यूमेन्ट्स की तफ्तीश जारी है। इन्हीं कागजातों से खुलासा हुआ था, कि कैसे नक्सली प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और बड़े नेताओं की हत्या करने की योजना बना रहे हैं। जैसे जैसे बरामद कागजातों की विस्तार से जांच की जा रही है, वैसे वैसे पता चल रहा है, कि कैसे देश में नक्सलियों ने ईसाई मिशनरी और इस्लामी जेहादियों से हाथ मिला लिया है। 

देश के वामपंथी संगठन भारत विरोध की अपनी मुहिम में इतने अंधे हो गए हैं, कि वह मार्क्सवाद की मूल अवधारणा को भी भूलते जा रहे हैं। कम्युनिज्म के जनक कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम करार देते हुए, अपने अनुयायियों को इससे दूर रहने का आदेश दिया था। यही वजह है कि दुनियाभर में वामपंथियों का धार्मिक रुझान वाले ईसाई और मुस्लिम देशों से संघर्ष होता आया है। 

लेकिन भारत आकर मामला उलटा होता हुआ दिख रहा है। यहां आकर वामपंथी क्रिश्चियन मिशनरीज और मुस्लिम जेहादियों से हाथ मिला लेते हैं। क्योंकि यहां इन तीनों के सामने एक ही शत्रु है, वह है राष्ट्रवादी विचार रखने वाला भारत का आम नागरिक और राष्ट्रवाद तथा सनातन धर्म का प्रचार करने वाले संगठन।  

नक्सलियों का गठजोड़ मिशनरियों और जेहादियो से कराने में सबसे बड़ी भूमिका शहरी नक्सलियों की है। जो कि जंगलों में हथियार थामे हत्यारे नक्सली गिरोहों को वैचारिक आधार देते हैं और उन्हें सुविधाएं मुहैया कराते हैं। 

पिछले दिनों जो पांच शहरी नक्सली गिरफ्तार किए गए हैं। उनके पास से बरामद दस्तावेजों से कई राज खुल रहे हैं। ऐसा ही एक पत्र, जो कि लाल सलाम के साथ किसी विजयन दादा को लिखा गया है, उसमें कहा गया है कि “हम पिछले कई सालों से रांची जेसुइट सोसायटी के साथ काम कर रहे हैं, ईसाइयत को आगे बढ़ाने के लिए समाज के सबसे गरीब और पिछड़े लोगों के बीच काम कर रहे हैं।”

इस पत्र में पीटर मार्टिन, एंथोनी पुथुमट्टाथिल, जेवियर सोरेंग और मारिया लुईस जैसे नाम लिखे हुए है। इस चिट्ठी में लिखी हुई बातों से यह साफ हो जाता है, कि कैसे ईसाई मिशनरियां लोगों का धर्मांतरण करके उन्हें लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ भड़काती हैं। जिसके बाद नक्सली संगठन उनके गुस्से को हवा देते हुए उन्हें गुमराह करके हिंसा के रास्ते पर धकेल देते हैं।

मिशनरियों और नक्सलियों के गठजोड़ का खुलासा इस बात से भी होता है, कि देश के आदिवासी इलाकों में सरकारी स्कूल, वन रक्षक, पुलिसवाले, पंचायत प्रतिनिधि हमेशा नक्सलियों के निशाने पर रहते हैं। लेकिन ऐसी एक भी घटना नहीं है जिसमें नक्सलियों ने किसी ईसाई धर्मप्रचारक या चर्च को निशाना बनाया हो। इसके विपरीत जो भी व्यक्ति ईसाई मिशनरियों के रास्ते में बाधा बनता है, उसे नक्सली मार डालते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या की घटना है, इस निहत्थे संन्यासी ने ओडिशा के कंधमाल में सनातन धर्म का प्रचार करने का जिम्मा संभाला था, जिससे ईसाई मिशनरीज बेहद नाराज थीं। स्वामी लक्ष्मणानंद की बाद में पूजा करते समय हत्या कर दी गई। उनकी हत्या का शक नक्सलियों पर ही है।     

इन नक्सलियों का जेहादियों से भी घनिष्ठ संबंध है। हाल ही में गिरफ्तार किए गए शहरी नक्सलियों में से एक रोना विल्सन एक अतिवादी संगठन कमेटी फॉर द रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिसनर्स (सीआरपीपी) का प्रेस प्रवक्ता है। सीआरपीपी का मुखिया है कश्मीरी आतंकियों का निकट सहयोगी सय्यद अब्दुल रहमान गिलानी। गिलानी को संसद पर आतंकी हमले के मामले में अफजल गुरू, शौकत हुसैन और नवजोत संधु के साथ गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सबूतों की कमी के चलते छूट गया था। गिलानी जैसे आतंकी समर्थकों की पीठ पर पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेन्सी आईएसआई का हाथ है। 

इन शहरी नक्सलियों की गिरफ्तारी से हर दिन नए राज खुल रहे हैं। इन सभी की गिरफ्तारी भीमा कोरेगांव में दलित समुदाय को हिंसा के लिए भड़काने के आरोप में हुई थी। इन सभी की देशविरोधी मंशा का खुलासा धीरे धीरे हो रहा है। यह लोग इस्लामी जेहादियों और मिशनरियों से तो पहले ही हाथ मिला चुके थे। अब इनके एजेन्डे पर आदिवासी और दलितों जैसे हाशिए पर रहे समुदाय हैं। जिनको अपने साथ मिलाकर यह लोग लोकतांत्रिक भारत के सामने बड़ी चुनौती खड़ी करना चाहते हैं। इस गठजोड़ का अंत करना देश हित के लिए बेहद जरुरी है।