नई दिल्ली- एनडीए लोकसभा चुनावों के लिए एक्शन मोड में आ चुका है। सहयोगियों के साथ सीटों की शेयरिंग का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। पहला खाका बिहार से लगभग सामने आ गया है कि बीजेपी अपने सहयोगियों को कितनी सीटें देगी और उसके खुद के उम्मीदवार कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और नीतीश कुमार मीडिया के सामने आए और यह स्पष्ट किया कि दोनों दल बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। बराबर की सीटें कितनी-कितनी होंगी, यह नहीं बताया गया क्योंकि बिहार में एनडीए मतलब और पार्टियां भी हैं। राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी। 

2014 चुनावों में जेडीयू-बीजेपी साथ नहीं थी। बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ 31 सीटों पर परचम लहराया था। 22 सीटें बीजेपी, 6 लोक जनशक्ति पार्टी और तीन रालोसपा ने जीती थी। अब हालात और दोस्त दोनों बदल गए हैं। बीजेपी के दो कनिष्ठ दोस्तों के बीच बराबर का दोस्त जेडीयू आ गई है। सवाल यह है कि दोनों बराबर वाले दोस्त(बीजेपी-जेडीयू) बाराबर-बराबर सीटें ले लेंगे तो बाकियों के हाथ क्या लगेगा?, इसको भी अमित शाह और नीतीश ने साफ किया कि बाकी सहयोगियों को सम्मानजनक सीटें दी जाएंगी। 

रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस ने पिछले दिनों साफ कह दिया था कि पार्टी 7 सीटों पर अपनी दावेदारी रखेगी। उपेंद्र  कुशवाहा को तीन सीटें थी, जिनमें एक सांसद अरुण कुमार फिलहाल बागी हैं। तो क्या उपेंद्र तीन से कम सीटें लेने राजी होंगे?, क्या बीजेपी जेडीयू के अतिरिक्त के सहयोगियों को 10 सीटे दे देगी? फिर बचेंगी 30 यानी की बीजेपी-जेडीयू को मिलेंगी 15-15 सीटें, जो संभव नहीं दिखता। 

माय नेशन के सूत्र बताते हैं कि बीजेपी और जेडीयू 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है। बाकी बची 6 सीटों में 5 लोजपा को और 1 रालोसपा के खाते में दी जाएंगी। इस बात को रालोसपा के मुखिया और  केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा शायद भांपते भी हैं। 

इधर दिल्ली में बिहार की सीट शेयरिंग का मसौदा तैयार हो रहा था तो उधर, बिहार के अरवल में रालोसपा चीफ उपेंद्र बीजेपी और नीतीश के फिलहाल के कट्टर सियासी दुश्मन लालूपुत्र तेजस्वी के साथ चाय-नाश्ता कर रहे थे। 

हालांकि तेजस्वी के साथ अपनी मीटिंग को उपेंद्र यह कहते हुए शिष्टाचार मीटिंग बता रहे थे कि वह दोनों एक वक्त पर एक इलाके में थे और मिले तो चाय-पानी हो गया। पर तेजस्वी जो कहते हैं उसके गंभीर मायने हैं कि " हमारी मुलाकात हुई है, क्या बात हुई सारी बात बताना जरूरी नहीं। एक ही दिन में सबकुछ थोड़ी ना होता है, गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ती है।"

 


बिहार में सीटों को लेकर अमित शाह और नीतीश कुमार का ऐलान यह बताने लगा है कि पासवान के साथ थोड़ी मुरव्वत हो सकती है लेकिन कुशवाहा के हाथ अतिरिक्त कुछ नहीं लगना। कुशवाहा ने भी इशारे में जवाब दे दिया है।

बिहार पिछले पांच सालों में बिहार के वोटरों ने गठबंधन, ब्रेकअप और फिर से हाथ मिलाने का फिल्मी सीन की तरह जल्दी-जल्दी बदलने वाला दौर देख लिया है। ऐसे में आरजेडी खेमें में बीजेपी के 2014 के छोटे सहयोगी जाएं तो अचरज नहीं

2014 से अबतक बिहार की सियासत

2014 लोकसभा चुनाव बीजेपी के खिलाफ लड़ चुके नीतीश फिर से बीजेपी के साथ है, उनकी पार्टी एनडीए का हिस्सा है। 2014 लोकसभा चुनाव फिर 2015 बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश का मुख्यमंत्री बनाना लालू के पुत्र तेजस्वी का उपमुख्यमंत्री बनाना, विधानसभा में बीजेपी का सीटों का कम होना, सब कुछ बहुत तेजी से हुआ। इससे भी ज्यादा तेजी से घटनाक्रम में परिवर्तन तब होने लगे जब जनवरी 2017 में गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना पहुंचे। 5 जनवरी 2017 को दोनों नेताओं ने एक-दूसरे द्वारा किए जा रहे कार्यों की तारीफ की। तभी स्पष्ट होने लगा था कि वक्त और माहौल बदल चुका है, तारीख खुद को दुहराने जा रही है। हालांकि, अभी तक नीतीश और लालू के राजद का साथ बरकार था। 

बिहार में महागठबंधन के बैनर तले सरकार चला रहे आरजेडी-जेडीयू के बिच तालमेल ना होने की दूसरी बड़ी कथा 2017 में राष्ट्रपति चुनावों को लेकर है। एनडीए ने वर्तमान राष्ट्रपति, रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया था, यूपीए से उम्मीदवार थीं मीरा कुमार। बिहार में सत्तासीन महागठबंधन में पहले इस बात पर सहमति थी कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया जाएगा।  इसी दौरान एनडीए ने बिहार में तब के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। यहां नीतीश का स्टैंड बदला, और आरजेडी-जेडीयू की राहें अगल हैं, गठबंधन में सबकुछ सामान्य नहीं है, लगने लगा था। 

जो अनुमानित था वह हकीकत बनने में लंबा वक्त नहीं लगा। जुलाई 2017 के आखिरी पखवाड़े में ही रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति चुनाव जीतने और बिहार में महागठबंधन का ध्वस्त हो जाना बड़ी जल्दी-जल्दी हुआ।

दोनों दलों के नेता एक-दूसरे पर आक्रोशित हैं, यह तब मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर छिपाने वाली बात नहीं थी। इसी दौरान बुधवार 26 जुलाई 2017 का दिन बिहार में महागठबंधन की सरकार के लिए अशुभ रहा। तेजस्वी पर दर्ज हुए भ्रष्टाचार के मामलों के बाद जेडीयू नेताओं की तरफ से उनके इस्तीफे की मांग और इससे उपजे विवाद, तेजस्वी और उनकी पार्टी का इस्तीफा ना देने पर अड़ना, इनका नतीजा नीतीश कुमार के इस्तीफे के रूप में सामने आया। अगले ही दिन 27 जुलाई को नीतीश ने पुराने दोस्त बीजेपी के साथ सरकार बना ली। बिहार में फिर से एनडीए की सरकार बन गई। 

लौटते हैं आज के बिहार की सियासत पर, जिस नरेंद्र मोदी के नाम की मुखालफत कर नीतीश ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था, शुक्रवार 26 अक्टूबर 2018 को उन्हीं नरेंद्र मोदी मिलने नीतीश 7 लोक कल्याण मार्ग के उनके सरकारी आवास पर थे, मंत्रणा हुई। 

पिछले लोकसभा चुनावों में 22 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने उससे कम सीटों पर अपनी दावेदारी समेट कर यह साफ कर दिया है कि उसका लक्ष्य बड़ा है इसके लिए समझौता भी स्वीकार है।