भारत ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से मुकाबले के लिये कानूनी ढांचा खड़ा करने में संयुक्त राष्ट्र की अक्षमता पर दुख जताया है। भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की यह कमी आतंकवादियों और उनका समर्थक करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के कानूनी प्रयासों को प्रभावित कर रही है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव/कानूनी सलाहकार येदला उमाशंकर ने कहा कि भारत का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ व्यापक समझौता (सीसीआईटी) आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में एक मजबूत कानूनी आधार उपलब्ध कराएगा और आतंकवाद से मुकाबले के प्रयास के तहत बहुपक्षीय और सामूहिक पैमाना होना सभी सदस्य देशों के हित में होगा।

‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को खत्म करने के उपाय’ विषय पर छठी समिति की बैठक में उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवादियों एवं उनके समर्थकों के बीच संबंधों का पर्दाफाश करने और उसे

नष्ट करने के लिये साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। जवाबदेही और न्याय सुनिश्चित करने, सदस्य देशों के बीच संवाद बढ़ाने और व्यापक समझ विकसित करने के वास्ते एक अंतरराष्ट्रीय तंत्र की भी जरूरत है। यह समिति कानूनी मुद्दों से निपटने के लिये बनी है।

उन्होंने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक समझौता को लेकर सहमति बनाने में संयुक्त राष्ट्र की अक्षमता अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचे में अब भी बेहद अहम कमियों में एक बना हुआ है जबकि आतंकवाद

का खतरा हमारे ऊपर मंडरा रहा है। ये ढांचे आतंकवादियों, उनके वित्तीय प्रवाह और उनके समर्थक नेटवर्कों के लिये पनाहगाह को नष्ट करने में कानूनी प्रयास को विस्तार देंगे।

उन्होंने यह भी कहा कि बीते दशक में संयुक्त राष्ट्र महासभा में वैश्विक आतंकवाद रोधी रणनीति (जीसीटीएस) पर हुई चर्चा धरातल पर व्यावहारिक रूप में कम ही प्रभावी रही।

उन्होंने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा स्थापित प्रतिबंध समितियां अपारदर्शी कार्यशैली और राजनीति से प्रेरित फैसलों के चलते चुनिंदा साधन मात्र रह गई हैं।’’