यूपी में योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री कार्यालय में दो साल पूरे कर लिए हैं। योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठ के महंत भी हैं। संन्यासी से राजनेता बने योगी आदित्यनाथ ने संन्यास की ओर बढ़ने के कारणों पहली बार सार्वजनिक तौर पर साझा किया है। 

1994 में बसंत पंचमी के दिन ली दीक्षा

यह पूछे जाने पर कि आखिर कैसे पारिवारिक मोहमाया और आरामभरी जिंदगी छोड़कर वह साधु बन गए तो आदित्यनाथ ने कहा, 'मेरी जिंदगी में अध्यात्म का महत्व शुरू से ही था । जब मैं ग्रेजुएशन कर रहा था उस समय मैं महंत अद्वैतनाथ जी के संपर्क में आ गया था, उस समय दो चीजें चल रही थीं - एक तो अध्यात्म की ओर मेरी रूचि थी, दूसरा उस समय के सबसे बड़े सांस्कृतिक आंदोलन रामजन्म भूमि आंदोलन, उसकी मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष महंत अद्वैतनाथ जी महाराज थे। इन दोनों कारणों से उनके संपर्क में आया था और फिर आगे बढ़ता गया और 1993 में मैंने संन्यास लेने का पूर्ण निश्चय किया। 1994 में बसंत पंचमी के दिन मैंने योग की दीक्षा ले ली।' 

सत्ता में रहते हुए भी उसमें शामिल नहीं

संन्यास का कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा, हमारा संन्यास का कारण लोक कल्याण, समाज कल्याण है। राजनीति हमारे लिए कोई पेशा नहीं है। हम उत्तर प्रदेश की परंपरागत राजनीति को बदलने के लिए आए हैं। आदित्यनाथ ने कहा, मैं आज भी संन्यासी हूं, सत्ता में रहते हुए भी हम लोगों की सत्ता में संल्प्तिता नहीं होती है। हम एक निर्लिप्त भाव के साथ इस व्यवस्था से जुड़े हैं। लोक कल्याण और राष्ट्र कल्याण इसका महत्वपूर्ण माध्यम है और उसी भाव के साथ आज भी काम कर रहे हैं।

युवाओं को पढ़नी चाहिए पीएम मोदी की किताब

यह पूछने पर कि क्या वह नौजवानों के लिए कोई किताब बताएंगे जिससे नौजवान कुछ शिक्षा हासिल कर सकें, इस पर योगी ने कहा कि मुझे लगता है कि इस देश के नौजवानों को खासकर के छात्रों को प्रधानमंत्री मोदी की एक्जाम वॉरियर पढ़नी चाहिये । यह पुस्तक नौजवानों को हर प्रकार की चुनौती का सामना करना सिखाती है, यह पुस्तक उनके लिए प्रेरणादायी बन सकती है।