नई  दिल्ली। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों के बाद भाजपा झारखंड को लेकर परेशान दिखाई दे रही है। क्योंकि महाराष्ट्र में अभी तक भाजपा सरकार नहीं बना पाई है वहीं हरियाणा में नतीजे भाजपा के उम्मीदों के अनुकूल नहीं आए हैं। जिसके लेकर भाजपा नेतृत्व झारखंड के लिए नई रणनीति बना रही है।

असल में महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ ही उपचुनाव के विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के पक्ष में नहीं आए हैं। जिसको लेकर भाजपा हाई कमान परेशान है। वहीं पार्टी के सामने अब नई चुनौती झारखंड है। क्योंकि पार्टी को लग रहा है कि अगर ये राज्य भी हाथ से निकला तो नेतृत्व पर कई सवाल।

खासतौर से पीए नरेन्द्र मोदी को लेकर। लिहाजा भाजपा को अब झारखंड विधानसभा चुनाव को अग्निपरीक्षा मान रही है और इसके लिए चिंतित दिखाई दे रही है। हालांकि भाजपा मान कर चल रही है कि पांच साल तक सरकार चलाने के लिए जनता उसे समर्थन देगी। क्योंकि भाजपा ने पहली बार सियासी स्थिरता लाने में कामयाबी हासिल की है।

हालांकि पार्टी  ये भी मान कर चल रही है कि गैर आदिवासी को सीएम बनाने के बाद कहीं उसका दांव उलटा न पड़ जाए। क्योंकि झारखंड आदिवासी बाहुल्य राज्य है। इस बार कई स्थानीय मुद्दों के साथ ही गैर आदिवासी सीएम के मुद्दे पर पार्टी को विपक्ष से जूझना होगा। इस बार भाजपा का मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राजद और वामदलों के महागठबंधन से होना है।

लिहाजा पार्टी इसकी तैयारी पहले से कर रही है। वहीं बिहार में उसकी सहयोगी जदयू से भी जूझना पड़ सकता है। हालांकि इस बार पार्टी ने राष्ट्रवाद के साथ-साथ स्थानीय मुद्दों को भी महत्व देने का फैसला किया है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि चुनाव से पहले अयोध्या विवाद का फैसला आ जाएगा। इसके जरिए वह अपने हिंदू वोटरों को लुभा सकती है हालांकि फैसला हिंदू समाज के हक में आता है।