उत्तराखंड के मशहूर राजाजी नेशनल में बाघों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। करीब साढ़े तीन साल पहले यहां केवल 13 बाघ थे। लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 34 से ज्यादा हो गई है।

उम्मीद की जा रही है कि अगले साल होने वाली बाघों की संख्या 50 का आंकड़ा पार कर सकती है। राजाजी नेशनल पार्क प्रबंधन के अनुसार यहां केवल बाघ ही नहीं, बल्कि दूसरे मांसाहारी और शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। 

इन वन्य पशुओं को देखने आने वाले सैलानियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। रिजर्व बनने से पहले जहां पार्क में हर साल 20-22 हजार पर्यटक वहीं अब पर्यटकों की संख्या  40 से 50 हजार तक पहुंच चुकी है। इसकी वजह से पार्क को पिछले दो साल से एक करोड़ सालाना की आय हो रही है। 

टाइगर रिजर्व में राजाजी नेशनल पार्क के 820.42 वर्ग किमी के कोर और हरिद्वार व लैंसडाउन वन प्रभागों के 254.75 वर्ग किमी के हिस्से को मिला दिया गया था। 

इसके बाद राजाजी टाइगर रिजर्व में बाघ संरक्षण के प्रयासों में तेजी आई और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने इसमें भरपूर सहयोग दिया। जिसके नतीजे में यहां बाघों की संख्या में इजाफा होने लगा।

पार्क के अधिकारियों के मुताबिक यहां वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं। पेट्रोलिंग को जीपीएस से जोड़ा गया है और जल्द ही मोबाइल एप के जरिये भी इसके लिए कोशिशें चल रही हैं। रिजर्व से लगे क्षेत्रों के गांवों की पर्यटन गतिविधियों में भागीदारी की गई है।

रॉयल बंगाल टाइगर को 18 नवंबर 1972 में भारत का राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया गया था। जिसके बाद इन्हें और दूसरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे दूसरे वन्य जीवों के संरक्षण के लिए 1972 में भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। 

बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए 1973 में देश में प्रोजेक्ट बाघ तैयार किया गया। इसके लिए  भारत के 17 राज्यों में 49 बाघ रिज़र्व केंद्र बनाए गए। जहां पर अवैध शिकार की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त शिकार विरोधी नियम और समर्पित टास्क फोर्स स्थापित की गई।

इन कदमों का फायदा हुआ और आज देश में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है।