नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने झटका देते हुए राज्य में होने वाले विधासभा उपचुनाव के लिए चुनावी कैंपेन के कांग्रेस को ऑफर को ठुकरा दिया है। वहीं कांग्रेस अब अपनी रणनीति के तहत ही चुनाव में उतरने की तैयारी में है और उसने सोशल मीडिया अभियान को तेज कर दिया है।


राज्य की 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों पर कांग्रेस ने अपने सोशल मीडिया अभियान को तेज कर दिया है। क्योंकि रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए चुनावी कैंपेन से मना कर दिया है।  हालांकि पहले कांग्रेस की तरफ से पीके को ऑफर दिया गया था। लेकिन राज्य में भाजपा की मजबूत स्थिति को देखते हुए पीके ने राज्य मे कांग्रेस के प्रचार का जिम्मा नहीं लिया है। 

प्रशांत किशोर ने मीडिया को बताया था कि कमलनाथ और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उपचुनावों के लिए प्रचार करने के लिए उनसे संपर्क किया था, लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया क्योंकि वह कांग्रेस की मदद के लिए तैयार नहीं हैं। वहीं राज्य में कांग्रेस के एक नेता का कहना है कि पार्टी किशोर के संपर्क में थी, लेकिन पार्टी पूरी तरह से अपने चुनाव अभियान उनके हाथ में नहीं देना चाहती थी। 

फिलहाल इस साल सितंबर में होने वाले उपचुनावों की तारीखों की घोषणा अभी करना बाकी है। फिलहाल कांग्रेस ने बगैर पीके के मैदान में उतरने की तैयारी कर ली है।  इसके लिए पार्टी सोशल मीडिया में अपना प्रचार कर रही है और राज्य की शिवराज सरकार पर आरोप लगा रही है।  असल में राज्य की जिन 24 सीटों पर चुनाव होना है उसमें से 22 सीटें सिंधिया समर्थकों के भाजपा में शामिल होने के बाद खाली हुई हैं। वहीं दो विधायकों के निधन के बाद राज्य में दो सीटें और खाली है। फिलहाल कांग्रेस और भाजपा दोनों ही ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं।

राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा में वर्तमान में 206 सदस्य हैं, जिनमें से 107 भाजपा के सांसद हैं। कांग्रेस के 92 सदस्य हैं और वहीं चार निर्दलीय, एक समाजवादी पार्टी और तीन बसपा विधायक हैं। जो भाजपा सरकार का समर्थन कर रहे हैं। वहीं वर्तमान में बहुमत का निशान 104 है। भाजपा को सत्ता में रहने के लिए 116 के आंकड़े तक पहुंचने के लिए कम से कम नौ सीटें जीतने की आवश्यकता है। वहीं कांग्रेस को कम 16 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी और सभी गैर-भाजपा विधायकों का समर्थन हासिल करना होगा। जिसके बाद वह भाजपा को सत्ता से बाहर सकेगी।