प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूसरे कार्यकाल के लिए लोकसभा चुनावों में मिली अप्रत्याशित जीत के बाद गुजरात में कहा कि उनकी सरकार का अगला कार्यकाल 2019- 2024 ठीक उसी तरह अहम है जैसे आजादी से पहले बनी भारत सरकार का कार्यकल 1942-47 अहम था।

चुनावों में जीत के बाद सबसे पहले गृह राज्य गुजरात पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद की एक सभा में कहा कि उनके अगले कार्यकाल के दौरान उनकी सरकार भारत को एक बार फिर वैश्विक व्यवस्था में उसका उचित मुकाम दिलाने की दिशा में काम करेगी। मोदी ने भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार भारत के लिए वह मुकाम हासिल कर के रहेगी।

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मोदी ने दावा किया कि आजादी से पहले भारत वैश्विक व्यवस्था के केन्द्र में बैठ चुका है और एक बार फिर उस जगह पर अपना वर्चस्व कायम कर लेगा। मोदी ने अहमदाबाद बीजेपी कार्यालय के बाहर आयोजित सभा के दौरान कही। खासबात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बयान के लिए उस जगह को चुना जहां से उन्होंने और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने-अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी।

दरअसल जीत के जश्न के लिए बीजेपी अहमदाबाद के खानपुर स्थित मुख्यालय के बाहर लोगों को संबोधित कर रहे थे। शहर का यही पार्टी ऑफिस है जहां से मोदी और शाह ने अपनी राजनीतिक पारी शुरू की और बीते लगभग दो दशकों से गुजरात में सत्ता का केन्द्र रहा है। हालांकि पार्टी का नया मुख्यालय अब राजधानी गांधीनगर में नवनिर्मित कमलम कॉम्प्लैक्स में स्थापित किया गया है। लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष के लिए खानपुर स्थित यह पार्टी ऑफिस बेहद महत्वपूर्ण है।

लिहाजा इस खास मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर भाजपा के उस वादे को याद किया। भाजपा ने पार्टी मेनिफेस्टो में भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनवाने की बात कही है। इस कवायद में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान लगभग 100 देशों की यात्रा की और 25 सितंबर 2015 को संयुक्त राष्ट्र आम सभा को  संबोधित करते हुए कहा कि सुरक्षा परिषद को 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए तैयार करने की जरूरत है और इसके बेहद जरूरी है कि भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दी जाए।

गौरतलब है कि आजादी से पहले ही भारत ने बतौर फाउंडिंग मेंबर 1 जनवरी 1942 को संयुक्त राष्ट्र को  अस्तित्व में लाने के लिए वॉशिंगटन डेक्लरेशन पर हस्ताक्षर किया था। इस समय तक वैश्विक शांति के प्रयासों में भारत की अहम भूमिका रही है लेकिन आजाद भारत में बनी पूर्व की सरकारों ने भारत के लिए इस भूमिका की वकालत में सफलता नहीं पाई। लिहाजा, अपने दूसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री को संकेत देने की जरूरत पड़ी कि जो काम 1942 से 1947 के बीच हो जाना चाहिए था अब उनके अगले कार्यकाल तक वह उनकी प्राथमिकता रहेगी।