प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राममंदिर के मुद्दे पर साफ कर दिया है कि भाजपा अध्यादेश लाने के पक्ष में नहीं है। पार्टी न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही कोई फैसला लेने के पक्ष में है। हालांकि उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया को धीमी गति से चल रही है, क्योंकि कांग्रेस के वकील सुप्रीम कोर्ट में 'बाधाएं' पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा तीन तलाक का मामला धर्म का मामला नहीं है। अगर ऐसा होता तो कई मुस्लिम देश इस पर प्रतिबंध न लगाते।

समाचार एजेंसी एएनआई को दिए गए साक्षात्कार में मोदी ने कहा कि 'हमने अपने भाजपा के घोषणा पत्र में कहा है कि राम मंदिर का हल संविधैनिक तरीके से किया जाएगा। जबकि लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में कहा था कि वह अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण चाहती है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में स्पष्ट किया है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जाना चाहिए. हाल ही में मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए पार्टी के सहयोगी संगठन और संघ परिवार द्वारा नए सिरे से यह मांग उठाई गई है।

संघ के अलावा शिवसेना ने भी इसपर अध्यादेश लाकर जल्द राम मंदिर निर्माण कराए जाने की मांग की थी। जिसको लेकर सरकार पर दबाव है। लेकिन आज पीएम मोदी ने साफ कर दिया है कि वह और पार्टी राममंदिर को लेकर कोई अध्यादेश सदन में नहीं लाएगी। उधर संघ परिवार भी इस मामले में हो रही देरी से सरकार से नाराज है। साथ ही संघ के सहयोगी संगठनों ने सरकार को धमकी दी है कि अगर राममंदिर के लिए अध्यादेश नहीं लाया जाएगा तो उनसे सत्ता से हाथ धोना पड़ेगा। लेकिन भाजपा इस मामले में तेजी नहीं दिखाना चाहती है। हालांकि उन्होंने ट्रिपल तालक पर जारी किए गए अध्यादेश की तरह मंदिर के निर्माण मामले पर भी एक अध्यादेश लाने की मांग की है।

उधर तीन राज्यों भाजपा की हार पर पीएम ने कहा कि तेलंगाना और मिजोरम में बीजेपी सत्ता में आएगी। ऐसा कोई कहता ही नहीं था। छत्तीसगढ़ में नतीजा साफ आया और बीजेपी हारी। अन्य दो राज्यों में हंग असैंबली की स्थिति रही। आप देखेंगे कि यहां हमारे लोग 15 साल की ऐंटी इन्कम्बैंसी में थे। उन्होंने हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और त्रिपुरा में स्थानीय निकायों में बीजेपी की जीत का हवाला दिया। 

तीन तलाक के मुद्दे पर मोदी ने कहा कि तीन तलाक और सबरीमाला में अलग-अलग है। दुनिया में तमाम इस्लामिक देशों ने भी तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। यह धर्म का मसला होता तो हर जगह लागू होता। यह लैंगिक न्याय का मसला है और इसका धर्म से लेना-देना नहीं है। हिंदुस्तान में कई मंदिर ऐसे हैं, जहां पुरुष भी नहीं जा सकते। यह छोटे दायरे की बात है।