अगरतला/नई दिल्ली- नशे से जूझते ‘उड़ता पंजाब’ की कहानी पर तो फिल्म भी बन गई। लेकिन सुदूर उत्तर-पूर्व का त्रिपुरा भी कुछ ऐसी ही समस्या का शिकार था, इस बात की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी। 

माय नेशन को त्रिपुरा पुलिस से मिले दस्तावेजों से यह साफ हो जाता है, कि कैसे त्रिपुरा में नशे की समस्या गहराती जा रही थी। त्रिपुरा में अभी हाल में लगभग तीन दशक पुराना वामपंथी पार्टी का शासन खत्म हुआ है और यहां बीजेपी की सरकार बनी है। 

बीजेपी के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने चुनाव में जिन मुद्दों को लेकर वामपंथी माणिक सरकार पर हमला बोला था, उसमें ड्रग्स का मुद्दा सबसे अहम था। बिप्लब बहुत दिनों से आरोप लगा रहे थे, कि माणिक सरकार के शासन काल में त्रिपुरा नशे के अड्डे में बदल गया है और यह ड्रग्स माफिया इस राज्य को धड़ल्ले से तस्करी के रुट के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे। 

यह कोई आरोप नहीं है, बल्कि नारकोटिक्स विभाग ने पिछले दिनों जो नशे का सामान जब्त किया है, उससे यह साफ हो जाता है राज्य में नशीली दवाओं का धंधा कितने जोर शोर से चल रहा था। जब्त की गई नशीली वस्तुओं में हेरोइन, गांजा और ब्राउन शुगर के साथ साथ कफ सिरप, नशीली टेबेलेट्स की भारी खेप पकड़ी गई है। इनकी मात्रा देखकर साफ पता चलता है कि बिना प्रशासन की मदद के इतना बड़ा रैकेट चलाया ही नहीं जा सकता था। 

अब राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद नशीली वस्तुओं की जब्ती में आश्चर्यजनक बढ़ोत्तरी हुई है। 

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने माय नेशन से खास बातचीत में कहा, कि ‘पिछली सरकार में त्रिपुरा के लोगों को नशे का आदी बना दिया था, इसके लिए मैं अपने पूर्ववर्ती माणिक सरकार को कभी माफ नहीं करुंगा। उन्होंने अपनी इतनी साफ छवि बना रखी थी, कि कोई भी उनपर शक नहीं कर सकता था। लेकिन उन्होंने त्रिपुरा को पंजाब से भी बड़ा नशे का अड्डा बना दिया। माणिक सरकार के शासनकाल में पुलिस और प्रशासन वामपंथी गुंडों की धमकी की वजह से दबाव में रहते थे। लेकिन अब जब हमने कानून का राज कायम किया है, तो सचाई सबके सामने आ रही है।’

9 मार्च 2018 को जब बिप्लब देब ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब से लेकर 5 सितंबर तक पुलिस ने चालीस हजार किलो गांजा, छह सौ(600) किलो ब्राउन शुगर और लगभग दो हजार किलो हेरोइन जब्त की। इसके साथ ही अस्सी(80) हजार कफ सिरप की बोतलें और डेढ़(1.5) लाख नशीली टेबलेट्स बरामद हुईं।  । 

लेकिन इससे पहले साल 2017 में माणिक सरकार के शासन काल में साढ़े आठ हजार(8500) किलो गांजा और 60 किलो हेरोइन जब्त की गई। जबकि नशीली टेबलेट की कोई खेप जब्त नहीं हुई। 2017 में कफ सिरप की बारह हजार(12000) बोतलें जब्त हुई थीं।   

इस साल और पिछले साल की जब्ती के आंकड़ों पर नजर डालें, तो यह साफ हो जाता है कि कैसे उस जमाने में ड्रग्स के कारोबारियों को संरक्षण दिया जाता था। त्रिपुरा में एक पूरी पीढ़ी नशे की लत का शिकार हो गई, लेकिन नशे के सौदागरों ने इन युवाओं की जान की कीमत पर करोड़ों अरबों रुपए कमाए।

ड्रग्स के खिलाफ इस जंग को पुलिस के आंकड़ों के नजरिए से देखें तो पता चलता है कि नशीले पदार्थों की जब्ती में 1541 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2017 में वामपंथी शासनकाल में त्रिपुरा में वामपंथी शासन काल में ड्रग्स तस्करी के 83(तिरासी)  मामले दर्ज किए गए थे और 65(पैंसठ) लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। लेकिन पिछले छह महीने के बीजेपी के शासन काल में ड्रग्स तस्करी के 254 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि 234 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। 

इन तुलनात्मक आंकड़ों से स्पष्ट हो जाता है, कि पुरानी माणिक सरकार के शासन काल में कैसे धड़ल्ले से नशीले पदार्थों का धंधा चल रहा था। हालांकि इस मामले में आरोप लगने के बाद सीपीएम के प्रवक्ता बिजन धर सफाई देने के लिए सामने आए, लेकिन उन्होंने कह दिया कि 'नशीले पदार्थों की इस जब्ती से राज्य के खजाने को क्या फायदा होगा'। 
क्या सीपीएम प्रवक्ता के इस बयान को नशीले पदार्थों के तस्करों से उनकी सहानुभूति माना जाना चाहिए। अब इसपर जल्दी ही नई बहस शुरु हो जाएगी।