नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज अंतिम सांस ली। वह कई दिनों से बीमार थे और उनका इलाज चल रहा था लेकिन आज उनका निधन हो गया। प्रणब मुखर्जी देश के दिग्गज राजनेता थे और उन्होंने केंद्र में वित्त, रक्षा, विदेश जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाला। लेकिन वह दो प्रधानमंत्री बनने से चूके गए थे क्योंकि गांधी परिवार ने उन्हें प्रधानमंत्री के पद के लिए तवज्जो नहीं दी। हालांकि बाद में यूपीए सरकार ने उन्हें राष्ट्रपति बनाया। लेकिन इसके साथ ही उनका राजनैतिक कैरियर खत्म हो गया। वह दो बार प्रधानमंत्री बनने के दावेदार थे।

पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न प्रणब मुखर्जी का आज लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। उन्होंने राजनीति में करीबी छह दशकों की लंबी पारी खेली और देश वह केन्द्रीय मंत्री के साथ ही राष्ट्रपति के पद पर रहे। आज प्रणब दा ने राजधानी दिल्ली के सैन्य अस्पताल में अंतिम सांसें लीं। वह ऐसे कांग्रेस के नेता हैं जो दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए और इसका सबसे बड़ा कारण गांधी परिवार था। प्रणब दा ने सत्तर के दशक में सियासत में कदम रखा है और उसके बाद वह केंद्र में वित्त, रक्षा, विदेश मंत्री बने। इसके बाद वह 2012 से जुलाई 2017 तक भारत के राष्ट्रपति रहे और देश के विकास में उनके योगदान को सम्मान देते हुए उन्हें केन्द्र की सत्ताधारी भाजपा सरकार ने भारत रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया।.

प्रणब मुखर्जी ने सियासी पारी की शुरूआत 1969 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सानिध्य में की और इसके बाद वह कांग्रेस टिकट पर राज्यसभा के लिए चुने गए।  अपने सियासी पारी के कुछ ही सालों में वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिए गए और कांग्रेस सरकार ने उन्हें औद्योगिक विकास विभाग में उपमंत्री नियुक्त किया। इसके बाद वह 1975, 1981, 1993, 1999 में फिर राज्यसभा के लिए चुने गए। वहीं प्रणब दा 1980 में वे राज्यसभा में कांग्रेस के नेता बने और वह कांग्रेस सरकार में सबसे शक्तिशाली कैबिनेट मंत्री माने जाते थे।

प्रणब दा साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद का सबसे प्रबल थे। लेकिन गांधी परिवार के वफादारों ने प्रणब दा को किनारे करके राजीव गांधी को प्रधानमंत्री चुना। इसके बाद जब राजीव गांधी  ने अपनी पहली कैबिनेट बनाई तो उसमें प्रणब दा का नाम गायब था। जबकि राजीव गांधी ने जगदीश टाइटलर, अंबिका सोनी, अरुण नेहरू और अरुण सिंह जैसे युवा चेहरों को जगह दी।  

इसके बाद दुखी होकर प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी बनाई।  हालांकि बाद में राजीव गांधी से राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। इसके बाद साल 2004 में कांग्रेस की जब सत्ता में वापसी हुई तो विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन सकी और प्रणब दा के प्रधानमंत्री बनने की चर्चाएं जोरों पर थी। लेकिन सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को पीएम बनाया। हालांकि वह मनमोहन सरकार में वित्त से लेकर विदेश मंत्री रहे। प्रणब दा को कांग्रेस पार्टी का संकट मोचक कहा जाता था।