अंग्रेजी शासनकाल में कुछ जाति विशेष को तरजीह दी जाती थी। ताकि वह अंग्रेजी शासन के प्रति अपनी जाति की ईमानदारी को सुनिश्चित कर सके। अंग्रेज चले गए, लेकिन उनके द्वारा अपनाई गई प्रथा आज भी राष्ट्पति की सुरक्षा के लिए गार्ड की नियुक्ति करते समय अपनाई जाती है।
राष्ट्रपति के गार्ड्स की नियुक्ति में केवल जाट, सिख और राजपूत जाति के व्यक्ति ही आवेदन कर सकते हैं। इसे संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए गौरव यादव ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसपर कोर्ट ने केंद्र सरकार, आर्मी चीफ को नोटिस जारी कर 4 हप्ते में मांगा जवाब।
कोर्ट 8 मई को इस मामले में अगली सुनवाई करेगा। इस याचिका में कहा गया है कि हमारे देश के संविधान में प्रावधान है कि प्रत्येक नागरिक को बराबरी का हक दिया जाएगा और जाति, रंग, क्षेत्र आदि के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं होगा। इस सबके बावजूद देश के संविधान का सबसे बड़ा पद जो राष्ट्रपति का है, वहां ही गार्ड की नियुक्ति में भेदभाव किया जा रहा है।
गौरतलब है कि इससे पहले यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी जिसको तत्कालीन मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया था कि भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रपति किसी जनहित याचिका का विषय नही हो सकते है। लेकिन बाद में आरटीआई के जरिये मांगे गए जवाब से साफ हो गया कि सिर्फ तीन जातियों को ही भर्ती किया जाता है जिसपर सुनवाई के बाद कोर्ट ने जवाब मांगा है।
Last Updated Dec 26, 2018, 6:32 PM IST