प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा, वर्ष 2014 का जनादेश ऐतिहासिक था। भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर वंशवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था। जब कोई सरकार ‘Family First’ की बजाए ‘India First’ की भावना के साथ चलती है तो यह उसके काम में भी दिखाई देता है।
वह 2014 की गर्मियों के दिन थे, जब देशवासियों ने निर्णायक रूप से मत देकर अपना फैसला सुनाया:
परिवारतंत्र को नहीं, लोकतंत्र को चुना।
विनाश को नहीं, विकास को चुना।
शिथिलता को नहीं, सुरक्षा को चुना।
अवरोध को नहीं, अवसर को प्राथमिकता दी।
वोट बैंक की राजनीति के ऊपर विकास की राजनीति को रखा।
2014 में देशवासी इस बात से बेहद दुखी थे कि हम सबका प्यारा भारत आखिर फ्रेजाइल फाइव देशों में क्यों है? क्यों किसी सकारात्मक खबर की जगह सिर्फ भ्रष्टाचार, चहेतों को गलत फायदा पहुंचाने और भाई-भतीजावाद जैसी खबरें ही हेडलाइन बनती थीं।
तब आम चुनाव में देशवासियों ने भ्रष्टाचार में डूबी उस सरकार से मुक्ति पाने और एक बेहतर भविष्य के लिए मतदान किया था।
वर्ष 2014 का जनादेश ऐतिहासिक था। भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर वंशवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था।
जब कोई सरकार ‘Family First’ की बजाए ‘India First’ की भावना के साथ चलती है तो यह उसके काम में भी दिखाई देता है।
वंशवाद की राजनीति से सबसे अधिक नुकसान संस्थाओं को हुआ है।
— Chowkidar Narendra Modi (@narendramodi) March 20, 2019
प्रेस से पार्लियामेंट तक।
सोल्जर्स से लेकर फ्री स्पीच तक।
कॉन्स्टिट्यूशन से लेकर कोर्ट तक।
कुछ भी नहीं छोड़ा।
कुछ विचार साझा कर रहा हूं...https://t.co/7zbt24FtFP
यह हमारी सरकार की नीतियों और कामकाज का ही असर है कि बीते पांच वर्षों में, भारत दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गया है।
हमारी सरकार के दृढ़संकल्प का ही नतीजा है कि आज भारत ने सेनिटेशन कवरेज में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। 2014 में जहां स्वच्छता का दायरा महज 38% था, वो आज बढ़कर 98% हो गया है। हमारी सरकार के प्रयासों से ही हर गरीब का आज बैंक में खाता है। जरूरतमंदों को बिना बैंक गारंटी के लोन मिले हैं। भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया गया है। बेघरों को घर उपलब्ध कराए गए हैं। गरीबों को मुफ्त चिकित्सा की सुविधा मिली है और युवाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसर मिले हैं।
आज हर क्षेत्र में हुए इस बुनियादी परिवर्तन का अर्थ यह है कि देश में एक ऐसी सरकार है, जिसके लिए देश की संस्थाएं सर्वोपरि हैं।
भारत ने देखा है कि जब भी वंशवादी राजनीति हावी हुई तो उसने देश की संस्थाओं को कमजोर करने का काम किया।
संसद:
16वीं लोकसभा की कुल प्रोडक्टिविटी शानदार तरीके से 85% रही, जो 15वीं लोकसभा से कहीं अधिक है।
वहीं 2014 से 2019 के बीच राज्यसभा की प्रोडक्टिविटी 68% रही।
अंतरिम बजट सत्र में लोकसभा की प्रोडक्टिविटी जहां 89% रही, वहीं राज्यसभा में यह महज 8% देखी गई।
दोनों सदनों की प्रोडक्टिविटी के इन आंकड़ों का क्या अर्थ है, इसे देश भली-भांति जानता है। यह स्पष्ट हो जाता है कि जब भी किसी गैर वंशवादी पार्टी की संख्या सदन में अधिक होती है तो उसमें स्वाभाविक रूप से अधिक काम करने की प्रवृत्ति होती है।
देशवासियों को यह पूछना चाहिए कि आखिर राज्यसभा ने उतना काम क्यों नहीं किया, जितना लोकसभा में हुआ? वे कौन सी शक्तियां थीं, जिन्होंने सदन के भीतर इतना हंगामा किया और क्यों?
प्रेस और अभिव्यक्ति:
वंशवाद को बढ़ावा देने वाली पार्टियां कभी भी स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता के साथ सहज नहीं रही हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस सरकार द्वारा लाया गया सबसे पहला संवैधानिक संशोधन फ्री स्पीच पर रोक लगाने के लिए ही था। फ्री प्रेस की पहचान यही है कि वो सत्ता को सच का आईना दिखाए, लेकिन उसे अश्लील और असभ्य की पहचान देने की कोशिश की गई।
यूपीए के शासनकाल में भी ऐसा ही देखने को मिला, जब वे एक ऐसा कानून लेकर आए, जिसके मुताबिक अगर आपने कुछ भी 'अपमानजनक' पोस्ट कर दिया तो आपको जेल में डाल दिया जाएगा।
यूपीए के ताकतवर मंत्रियों के बेटे के खिलाफ एक ट्वीट भी निर्दोष आदमी को जेल में डाल सकता था।
कुछ दिनों पहले ही देश ने उस डर के साये को भी देखा, जब कुछ युवाओं को कर्नाटक में एक कार्यक्रम के दौरान अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया, जहां कांग्रेस सत्ता में है।
लेकिन, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि किसी भी तरह की धमकी से जमीनी हकीकत नहीं बदलने वाली है। अगर वे जबरदस्ती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने का प्रयास करेंगे, तब भी कांग्रेस को लेकर लोगों की धारणा नहीं बदलेगी।
संविधान और न्यायालय:
25 जून, 1975 की शाम जब सूरज अस्त हुआ, तो इसके साथ ही भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की भी तिलांजलि दे दी गई।
तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा जल्दबाजी में दिए गए रेडियो संबोधन को सुनें तो स्पष्ट होता है कि कांग्रेस एक वंश की रक्षा करने के लिए किस हद तक जा सकती है।
आपातकाल ने देश को रातों-रात जेल की कोठरी में तब्दील कर दिया। यहां तक कि कुछ बोलना भी अपराध हो गया।
42वें संविधान संशोधन के जरिए अदालतों पर अंकुश लगा दिया गया। साथ ही संसद और अन्य संस्थाओं को भी नहीं बख्शा गया।
जनता की भावनाओं को देखते हुए इस आपातकाल को तो समाप्त कर दिया गया, लेकिन इसे थोपने वालों की संविधान विरोधी मानसिकता नहीं बदली। कांग्रेस ने अनुच्छेद 356 का लगभग सौ बार इस्तेमाल किया। सिर्फ श्रीमती इंदिरा गांधी ने ही लगभग पचास बार ऐसा किया। अगर उन्हें कोई राज्य सरकार या नेता पसंद नहीं आता था, तो सरकार को ही बर्खास्त कर दिया जाता था।
अदालतों की अवमानना करने में तो कांग्रेस ने महारत हासिल कर ली है। श्रीमती इंदिरा गांधी ही थीं, जो “Committed Judiciary” यानि 'प्रतिबद्ध न्यायपालिका' चाहती थीं। वो चाहती थीं कि अदालतें संविधान की जगह एक परिवार के प्रति वफादार रहें।
'प्रतिबद्ध न्यायपालिका' की इसी चाहत में कांग्रेस ने भारत के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की नियुक्ति करते समय कई सम्मानित जजों की अनदेखी की।
कांग्रेस के काम करने का तरीका एकदम साफ है - पहले नकारो, फिर अपमानित करो और इसके बाद धमकाओ। यदि कोई न्यायिक फैसला उनके खिलाफ जाता है, तो वे इसे पहले नकारते हैं, फिर जज को बदनाम करते हैं और उसके बाद जज के खिलाफ महाभियोग लाने में जुट जाते हैं।
सरकारी संस्थान:
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अपनी एक टिप्पणी में योजना आयोग को ‘A bunch of jokers’ यानि ‘जोकरों का समूह’ कहा था। उस समय योजना आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. मनमोहन सिंह थे।
उनकी इस टिप्पणी से साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस सरकारी संस्थाओं के प्रति किस प्रकार की सोच रखती है और कैसा सलूक करती है।
यूपीए शासन के दौर को याद कीजिए, उस समय कांग्रेस ने CAG पर सिर्फ इसलिए सवाल उठाए थे, क्योंकि उसने कांग्रेस सरकार के 2G घोटाला, कोयला घोटाला जैसे भ्रष्टाचार को उजागर किया था।
यूपीए शासन के समय में CBI कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन बनकर रह गई थी- लोकसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों के खिलाफ इसका बार-बार दुरुपयोग किया गया।
आईबी और RAW जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों में जानबूझकर तनाव पैदा किया गया।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय को एक ऐसे व्यक्ति ने फाड़ दिया था, जो कैबिनेट का सदस्य भी नहीं था और वह भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान।
NAC यानि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को प्रधानमंत्री कार्यालय के समानांतर खड़ा कर दिया गया था। और वही कांग्रेस आज संस्थानों की बात करती है!
इतना ही नहीं, जरा याद कीजिए, 1990 के दशक में केरल कांग्रेस के राजनीतिक फायदे के लिए देश की प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसी ISRO में एक काल्पनिक जासूसी कांड की कहानी गढ़ी गई। उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि इसका खामियाजा एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक और देश को भुगतना पड़ा।
सशस्त्र बल:
कांग्रेस हमेशा से रक्षा क्षेत्र को कमाई के एक स्रोत के रूप में देखती आई है। यही कारण है कि हमारे सशस्त्र बलों को कभी भी कांग्रेस से वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे।
1947 के बाद से ही, कांग्रेस की हर सरकार में तरह-तरह के रक्षा घोटाले होते रहे। घोटालों की इनकी शुरुआत जीप से हुई थी, जो तोप, पनडुब्बी और हेलिकॉप्टर तक पहुंच गई।
इनमें हर बिचौलिया एक खास परिवार से जुड़ा रहा है।
याद कीजिए, कांग्रेस के एक बड़े नेता ने जब सेना प्रमुख को गुंडा कहा तो उसके बाद पार्टी में उसका कद बढ़ा दिया गया। इससे पता चलता है कि अपनी सेना के प्रति भी वे कैसा तिरस्कार का भाव रखते हैं।
जब हमारी सेना आतंकियों और उसके सरपरस्तों के खिलाफ कार्रवाई करती है, तो कांग्रेस के नेता राजनीतिक नेतृत्व पर ‘खून की दलाली’ का आरोप लगाते हैं।
जब हमारी वायुसेना के जांबाज आतंकियों पर हमला करते हैं, तो कांग्रेस उनके दावे पर सवाल उठाती है।
कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव:
राजनीतिक दल उस जीवंत संस्था की तरह होते हैं, जहां भिन्न-भिन्न विचारों का सम्मान होता है। लेकिन दुख की बात है कि कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र में कोई विश्वास ही नहीं है।
अगर कोई नेता पार्टी अध्यक्ष बनने का सपना भी देखे, तो कांग्रेस में उसे फौरन बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया में भी उनके व्यवहार में घमंड और अधिकार का भाव दिखाई देता है। वर्तमान में उनका शीर्ष नेतृत्व बड़े-बड़े घोटालों में जमानत पर है। जब कभी कोई अथॉरिटी घोटाले से जुड़े सवाल पूछती है, तो वे लोग जवाब देना तक उचित नहीं समझते।
क्या वे लोग अपनी जवाबदेही से डरे हुए हैं?
जरा सोचिए:
प्रेस से पार्लियामेंट तक।
सोल्जर्स से लेकर फ्री स्पीच तक।
कॉन्स्टिट्यूशन से लेकर कोर्ट तक।
संस्थाओं को अपमानित करना कांग्रेस का तरीका रहा है।
उनकी सोच यही है कि सब गलत हैं, और सिर्फ कांग्रेस सही है। यानि ‘खाता न बही, जो कांग्रेस कहे, वही सही’।
जब भी आप वोट देने जाएं, अतीत को एक बार जरूर याद करें कि किस प्रकार एक परिवार की सत्ता की लालसा के चलते देश ने भारी कीमत चुकाई।
जब उन्होंने हमेशा ही देश को दांव पर लगाया है तो यह तय है कि अब भी वे ऐसा ही करेंगे।
याद रखिए, अगर हम अपनी स्वतंत्रता बचाए रखना चाहते हैं तो हमें हर पल सतर्क रहना होगा।
आइए, हम सजग-सतर्क बनें। हमारे संविधान निर्माताओं ने जो संवैधानिक संस्थाएं हमें सौंपी हैं, उन्हें और मजबूत बनाने का प्रयत्न करें।
पीएम मोदी के ब्लॉग www.narendramodi.in से साभार
Last Updated Mar 20, 2019, 12:52 PM IST