2014 के लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को मात्र 44 सीटों पर समेट दिया था। तभी कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल खड़े हो गए थे। यह कांग्रेस की सबसे बड़ी सियासी हार थी। वह पांच साल में इससे उबर नहीं पाई। नतीजा यह हुआ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 52 सीटों पर ही ठहर गई। कांग्रेस की हार के कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण है पार्टी का गांधी परिवार पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होना। पांच साल में पार्टी एक के बाद एक कई चुनाव हारती गई लेकिन कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल नहीं उठाए गए। अलबत्ता जिसने सवाल उठाए वह पार्टी से अलग ही हो गया। पार्टी लगातार ऐसे चेहरों को खोती रही, जो आज भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के नारे में किसी न किसी रूप में योगदान दे रहे हैं। एक नजर ऐसे ही चेहरों पर जिन्हें खोना कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। 

1. हिमंता बिस्वा सरमा, असम

कांग्रेस नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला काफी समय से चला आ रहा है लेकिन पार्टी को एक बड़ा झटका तब लगा जब 2015 में असम से कांग्रेस के विधायक हिमंता बिस्वा सरमा ने पार्टी से इस्तीफा दिया। उन्होंने सीधे राहुल गांधी को अपने पार्टी छोड़ने की वजह बताया। सरमा ने एक इंटरव्यू में साफ-साफ कहा कि राहुल गांधी के व्यवहार और पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उन्होंने राहुल गांधी की अपरिपक्वता को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, जब मैं राहुल से मिलने गया तो उन्होंने मेरी बातों को नजरअंदाज किया। हिमंता ने कहा, राहुल गांधी ने मेरे कई सुझावों और निवेदनों का जवाब नहीं दिया जिसके चलते मैं उनसे मिलने कई बार दिल्ली आया। मैंने उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरी किसी भी बात पर ध्यान नहीं दिया और अपने कुत्ते के साथ खेलते रहे। राहुल गांधी के इस बर्ताव से हिमंता बहुत ही आहत हुए | जिसका इशारा उन्होंने अपने एक ट्वीट में किया। दरअसल राहुल गांधी ने एक ट्वीट में अपने कुत्ते के साथ खेलते हुए एक वीडियो शेयर किया था। इसका जवाब देते हुए हिमांता ने लिखा, 'मैं इस कुत्ते को कैसे भूल सकता हूं, जिसके लिए आपने मेरी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया था।' इस घटना के बाद राहुल गांधी और उनके कुत्ते को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह के मीम्स बने। पार्टी ने हिमंता बिस्वा सरमा जैसा दमदार और परिपक्व नेता खो दिया। उन्हें एक वक्त में असम में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का दाहिना हाथ माना जाता था। कांग्रेस के इस नुकसान का फायदा भाजपा को मिला और पार्टी ने असम में अपना विस्तार किया। 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 14 में से 9 सीट मिली जबकि 2014 में कांग्रेस ने यहां 9 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस यहां 3 सीटों पर सिमट गई। 

2. वाईएसआर जगन रेड्डी, आंध्र

2010 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएसआरर रेड्डी की पत्नी विजयलक्ष्मी ने बुरे बर्ताव के आरोप लगाए थे। उनके मुताबिक जब वह वाईएसआर के देहांत के बाद सोनिया से मिलने दिल्ली पहुंची तो उनके साथ बहुत ही रुखा बर्ताव किया गया। यही नहीं सोनिया ने उन्हें सीधा आदेश दिया कि वो अपने बेटे को 'ओडारपू' यात्रा करने से रोके, जिसका मकसद उन लोगों को सांत्वना देना था, जो वाईएसआर रेड्डी की मौत के गम में आत्महत्या कर रहे थे। जब विजयलक्ष्मी  ने 'ओडारपू' यात्रा के पीछे के कारणों को समझाने की कोशिश की, तो गुस्से में सोनिया गांधी अपनी कुर्सी से उठ गईं और सीधा आदेश दिया कि यात्रा रोक दें। 

इस व्यवहार से हैरान और अपमानित विजयलक्ष्मी और उनकी बेटी चुपचाप हैदराबाद लौट आईं। उधर अपने पिता की मृत्यु के बाद जगन उनकी जगह लेने की उम्मीद कर रहे थे। वह कम से कम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर कार्य करना चाहते थे। लेकिन सोनिया और राहुल गांधी उन्हें सिरे से नकार दिया और गांधी परिवार ने राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में के रोसैया को नियुक्त किया। जबकि पूरी पार्टी, मंत्रिमंडल और विधायक वाईएसआर परिवार के साथ थे। इसके बाद जगन ने कांग्रेस छोड़ दी और वाईएसआर कांग्रेस का गठन किया। जगन की लगातार मेहनत का आज यह नतीजा आया है कि उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस 2019 के विधानसभा चुनावों में 175 सीटों में से 151 सीटों पर जीती है। वहीं लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी ने टीडीपी को पूरी तरह पछाड़ते हुए 22 सीटों पर जीत दर्ज की है। टीडीपी को केवल 3 सीटें हासिल हुई। ऐसे में जगन का साथ छोड़ना कांग्रेस को बहुत महंगा पड़ा। 

3. के पी यादव, मध्य प्रदेश

लोकसभा चुनाव 2019 में गुना सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और सिंधिया राज घराने के उत्तराधिकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनके गढ़ में हराने वाले शख्स का नाम है कृष्ण पाल सिंह यादव। गुना संसदीय क्षेत्र से नव-निर्वाचित सांसद केपी यादव की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। यह तस्वीर इस दावे के साथ शेयर की जा रही है कि जो केपी यादव कभी सिंधिया की गाड़ी के साथ सेल्फी लिया करते थे, उन्होंने ही आज लोकसभा चुनाव में महाराजा को पटखनी दे दी। पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक के पी यादव अशोकनगर के रहने वाले हैं, जहां उनके पिता रघुवीर सिंह यादव कांग्रेस के नेता और चार बार जिला पंचायत अध्यक्ष रहे।

रघुवीर सिंह ज्योतिरादित्य के पिता स्वर्गीय माधव राव सिंधिया के करीबी सहयोगी भी थे। इस मित्रता के चलते यादव के शुरू से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ घनिष्ठ संबंध थे। यादव की पत्नी अशोकनगर से जिला पंचायत सदस्य हैं। फरवरी 2018 में मध्य प्रदेश की मुंगावली विधानसभा सीट पर हुए उप-चुनाव में केपी यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से अपने लिए टिकट मांगा था। लेकिन केपी यादव की जगह ब्रिजेंद्र सिंह यादव को मुंगावली विधानसभा सीट से टिकट दिया गया और वो जीत भी गए। लेकिन केपी यादव का अपने नेता से मन खट्टा हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। 2019 लोकसभा चुनाव का नतीजा अब इतिहास है। 

4. प्रियंका चतुर्वेदी, महाराष्ट्र

प्रियंका चतुर्वेदी कांग्रेस में एक महत्वपूर्ण पद पर रहीं। उनकी गिनती एक दमदार प्रवक्ता के तौर पर होती थी। उन्हें युवाओं और सोशल मीडिया को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। प्रियंका की पहचान एक कट्टर कांग्रेसी प्रवक्ता के रूप में रही। लेकिन अब वह शिवसेना का हिस्सा हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान प्रियंका चतुर्वेदी राफेल सौदे को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के लिए मथुरा में थीं। राफेल सौदे पर कांग्रेस के नेता देश भर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। इस दौरान मथुरा के कुछ कांग्रेस नेताओं ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। घटना के बाद प्रियंका भड़क गईं। सूत्रों ने कहा कि जब प्रियंका ने संवाददाता सम्मेलन छोड़ा, तो कुछ नेताओं ने उनका होटल तक पीछा किया। प्रियंका ने पार्टी के शीर्ष नेताओं से इसकी शिकायत की। 
प्रियंका की शिकायत के बाद आरोपी नेताओं को तुरंत निलंबित कर दिया गया। लेकिन 15 अप्रैल को सख्त चेतावनी देने के बाद सभी को फिर से पार्टी में वापस ले लिया गया। इन नेताओं ने लिखित माफीनामा दिया। पश्चिमी यूपी में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस पूरे घटनाक्रम में हस्तक्षेप किया था। आरोपी नेताओं को पार्टी में बहाल किए जाने से प्रियंका बेहद आहत थीं। उन्होंने एक ट्वीट के जरिये अपने गुस्से का इजहार भी किया। इसके बाद वह कांग्रेस छोड़कर शिवसेना में शामिल हो गईं। चुनाव के दौरान एक दमदार प्रवक्ता को खोना कांग्रेस को और भी भारी पड़ा। 

5. टॉम वडक्कन, केरल

2009 में कांग्रेस ने कथित तौर पर त्रिशूर सीट से टॉम वडक्कन को टिकट देने पर विचार किया था, लेकिन केरल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को इस पर आपत्ति थी। पार्टी के त्रिशूर जिले के प्रमुख सीएन बालाकृष्णन ने वडक्कन की संभावित उम्मीदवारी पर सार्वजनिक रूप से आपत्ति जताई और उन्हें 'बाहरी' बताया। कांग्रेस ने आखिर में पीसी चाको को मैदान में उतारा। तब मामला रफादफा हो गया। वडक्कन ने 2014 में फिर से टिकट के लिए कोशिश की। कांग्रेस नेताओं ने हामी भी भारी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि वह पार्टी की राष्ट्रीय मीडिया सेल में महत्वपूर्ण पद पर कार्य करते रहे। लेकिन बाद में उनकी जगह अजय माकन ने ली और प्रमुख का पदभार संभाला। इसके बाद जब रणदीप सुरजेवाला ने माकन की जगह ली तो वडक्कन को पूरी तरह से किनारे कर दिया गया। इस कदम के बचाव में वडक्कन के मीडिया सेल के एक पूर्व सहयोगी ने कहा कि वह सुरजेवाला के तहत ट्विटर जैसे नए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए अनुकूल नहीं हैं। खास बात यह है कि वडक्कन ने एक दशक से अधिक समय तक पार्टी के संचार सचिव के रूप में कार्य किया था। हालांकि वडक्कन ने कांग्रेस छोड़ने का एक अलग कारण बताया। औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल होने के बाद प्रेस से बात करते हुए वडक्कन ने कहा कि जब कांग्रेस ने सेना की अखंडता पर सवाल उठाया तो वह इससे आहत हुए। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि पार्टी में वंशवादी राजनीति एक नए स्तर पर पहुंच गई है और कोई नहीं जानता कि पार्टी की बागडोर किसके हाथ में हैं। कांग्रेस नेताओं ने यहां तक कहा कि वडक्कन के बाहर निकलने से पार्टी को किसी भी तरह से नुकसान नहीं होगा। पार्टी के एक नेता ने कहा कि उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन कांग्रेस ने अपना एक पुराना वफादार नेता और प्रवक्ता खो दिया। 

राजनीति में दो बातें बहुत अहम होती हैं, एक पार्टी की कार्यशैली और दूसरा उसका नेता। अगर नेता की बात करें तो नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी में सबसे बुनियादी फर्क यही है कि मोदी की दमदार छवि पार्टी के अन्य नेताओं की कमियां को पूरा कर देती है, वहीं इसके उलट राहुल गांधी की कमजोर और अपरिपक्व छवि के चलते पार्टी के अन्य सामर्थ्यपूर्ण नेताओं को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है| 

दोनों पार्टियों में बुनयादी फर्क देखा जाए तो यह सोच और संगठन का है। कांग्रेस में बहुत बिखराव है। पार्टी में अनुशासन की कमी है। शीर्ष नेताओं का बूथ स्तर के कार्यकर्ता से संपर्क न होने के चलते कांग्रेस अपनी जमीन खोती जा रही हैं।  वहीं भाजपा एक संगठन की तरह कार्य करती है। उसके शीर्ष नेता जमीन से जुड़े हुए हैं और अपने बूथ स्तर के कार्यकर्ता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करते हैं |  इसका नतीजा है कि पार्टी ने अपना विस्तार बहुत ही तेजी से किया और आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। सन 1981 में 2 सीटों से शुरुआत करने वाली भाजपा के पास आज अपने दम पर 303 सांसद हैं।  

कांग्रेस के लिए यह समय ना सिर्फ आत्मचिंतन का है बल्कि खुद की जमीन तलाशने का भी है। पार्टी को जहां एक शीर्ष नेतृत्व की तत्काल आवश्यकता हैं वहीं जमीनी स्तर पर पार्टी को खड़ा करना एक बड़ी चुनौती है। अब भविष्य के गर्भ में कांग्रेस के लिए क्या छुपा है, ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन 'कांग्रेस मुक्त भारत' का भाजपा का नारा कुछ हद तक सही साबित हो रहा है|