पुलवामा हमले के बाद आतंकी सरपरस्तों की नकेल कस रही सरकार ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता मीरवाइज उमर फारूक समेत छह अलगाववादी नेताओं को मिली सुरक्षा हटा ली है। अन्य लोगों में शब्बीर शाह, अब्दुल गनी बट्ट, बिलाल लोन, फजल हक कुरैशी और हाशिम कुरैशी शामिल हैं। राज्य प्रशासन की ओर से इस संबंध में आदेश जारी कर दिए गए हैं। आदेश में पाकिस्तान समर्थक अलगाववादी सैयद अली शाह गिलानी का जिक्र नहीं है, क्योंकि गिलानी और जेकेएलएफ के प्रमुख यासिन मलिक को कोई सुरक्षा नहीं दी गई थी।

पुलवामा हमले के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थिति की समीक्षा करने  पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कहा था कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से संपर्क रखने वालों को दी जा रही सुरक्षा की समीक्षा की जाएगी। इससे पहले एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार के सुझाव पर ऐसे व्यक्तियों को मिली सुरक्षा की समीक्षा की गई, जिनपर आईएसआई के साथ संबंधों का शक है। ज्यादातर अलगाववादियों को जम्मू-कश्मीर पुलिस सुरक्षा मुहैया कराती है। 

इन नेताओं को दी गई सुरक्षा को किसी श्रेणी में नहीं रखा गया था लेकिन राज्य सरकार ने कुछ आतंकवादी समूहों से उनके जीवन को खतरा होने के अंदेशे को देखते हुए केंद्र के साथ सलाह-मशविरा कर उन्हें खास सुरक्षा दी हुई थी। आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकियों ने 1990 में उमर के पिता मीरवाइज फारूक की तथा 2002 में अब्दुल गनी लोन की हत्या कर दी थी ।

अधिकारियों ने बताया कि आदेश के मुताबिक अलगाववादियों को दी गई सुरक्षा एवं उपलब्ध कराए गए वाहन तत्काल वापस ले लिए जाएंगे। किसी भी बहाने से उन्हें या किसी भी अलगाववादी नेता को सुरक्षा या सुरक्षाकर्मी नहीं मुहैया कराए जाएंगे। अगर सरकार ने उन्हें किसी तरह की सुविधा दी है तो वह भी भविष्य में वापस ले ली जाएगी। उन्होंने बताया कि पुलिस इस बात की समीक्षा करेगी कि अगर किसी अन्य अलगाववादी के पास सुरक्षा या अन्य कोई सुविधा है तो उसे तत्काल वापस ले लिया जाएगा। 

सुरक्षा वापस लिए जाने के बाद अब्दुल गनी बट्ट ने कहा कि यह सुरक्षा राज्य सरकार की ओर से दी गई थी। मुझे इसकी जरूरत नहीं है। 

अलगाववादियों की सुरक्षा पर केंद्र सरकार भी काफी खर्च करती है। राज्य सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, अलगाववादियों की सुरक्षा पर पिछले 5 साल में करीब 149.92 करोड़ रुपये सुरक्षा में तैनात निजी सुरक्षा गार्ड (पीएसओ) पर खर्च किए गए। घाटी के अलगाववादी नेताओं पर खर्च का ज्यादातर हिस्सा केंद्र सरकार उठाती रही है। इस खर्च में महज 10 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार और शेष 90 फीसदी केंद्र वहन करती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 साल में 309.35 करोड़ रुपये अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में लगाए गए निजी सुरक्षा गार्ड और अन्य सुरक्षा पर खर्च हो गए।

कश्मीर में भले ही आतंकवाद लगातार बढ़ रहा हो, लेकिन यहां के अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा पर राज्य सरकार सालाना करीब 10 करोड़ रुपये खर्च करती है। फरवरी 2018 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पेश रिपोर्ट के मुताबिक, मीरवाइज उमर फारुख की सुरक्षा में डीएसपी रैंक के अधिकारी लगे हैं। उसके सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर पिछले 10 साल में 5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके हैं।

सज्जाद लोन, बिलाल लोन और शबनम लोन, आगा हसन, अब्दुल गनी बट्ट और मौलाना अब्बास अंसारी को सुरक्षा मिली हुई है। हुर्रियत नेता अब्दुल गनी बट्ट की सुरक्षा पर एक दशक में करीब ढाई करोड़ खर्च हुए। वहीं अब्बास अंसारी की  सुरक्षा का खर्च 3 करोड़ रुपये से ज्यादा है। जम्मू-कश्मीर  में 25 लोगों को जेड प्लस सुरक्षा है। इसके अलावा करीब 1200 लोगों के पास अलग-अलग तरह की सुरक्षा है।