जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षा बलों पर आईईडी से हुए फिदायीन हमले ने सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। इस हमले में 40 से ज्यादा जवान शहीद  हुए हैं। अब सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ अपनाई जाने वाली रणनीति पर विचार करना होगा। 

सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों के अनुसार, आतंकी संगठनों ने नक्सलियों की रणनीति को फिदायीन हमले के साथ मिलाया है। इसके पीछे उनकी कोशिश सीधे गोलीबारी से बचने की है। 

सीआरपीएफ के एक शीर्ष अधिकारी ने 'माय नेशन' को बताया, 'इससे पहले नक्सल प्रभावित इलाकों में ही सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाने के लिए आईईडी का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इस बार जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन ने कई सौ किलो आईईडी का इस्तेमाल कर सीआरपीएफ के काफिले को निशाना बनाया है। वह नक्सलियों की रणनीति को फिदायीन हमलों के साथ मिला रहा है। यह काफी खतरनाक चलन है।'

सीआरपीएफ पर सबसे बड़ा हमला साल 2010 में हुआ था। तब नक्सलियों के हमले में 75 जवान शहीद हो गए थे। उस हमले में भी आईईडी का इस्तेमाल किया गया था। यह हमला तब हुआ था जब छत्तीसगढ़ के सुकर्णा के जंगलों से गुजर रहे सीआरपीएफ के काफिले को आईईडी से धमाका कर उड़ा दिया गया। पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुआ हमला दूसरी बड़ी घटना है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, 2002 तक आतंकवादी संगठन आईईडी से हमले करते थे लेकिन जम्मू-कश्मीर में एक या दो हमलों में ही आईईडी का इस्तेमाल किया गया। इस हमले ने आतंकियों की सुरक्षा बलों से आमने-सामने की लड़ाई न लड़ने की रणनीति का भी खुलासा कर दिया है। नक्सली आमतौर पर घने जंगलों में सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए छापामार रणनीति अपनाते हैं। 

बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा में नक्सली लंबी तार के जरिये आईईडी में धमाका करते हैं। इस तरह के हमलों को अंजाम देने के लिए स्थानीय लोगों का इस्तेमाल किया जाता है। घटनास्थल से 100 से 200 मीटर दूर खड़ा नक्सली बटन दबाकर सड़क से गुजर रहे सुरक्षा बलों के काफिलों को निशाना बनाता है। 

एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया, "यह सुरक्षा बलों से आमने-सामने की लड़ाई न करने की रणनीति है। अगर आतंकी जम्मू-कश्मीर में इस रणनीति को इस्तेमाल करते हैं तो यह घातक हो सकती है। कश्मीर में आईईडी से हमला करना काफी दुर्लभ मामला है। आमतौर पर जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठन ग्रेनेड फेंककर या गोलीबारी कर सुरक्षा बलों को निशाना बनाते हैं।