पिछले साल रबी सीजन के आंकड़ों के मुकाबले इस बार अभी तक बुवाई लगभग नौ फीसदी कम हुई है। कृषि मंत्रालय ने इस बारे में आंकड़े जारी किए हैं। जिसके मुताबिक पिछले साल अब तक 93 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हो चुकी थी, जबकि चालू सीजन में 84 लाख हेक्टेयर में फसल लगाई जा सकी है।

हालांकि सामान्य तौर पर खरीफ फसलों की कटाई के साथ ही रबी फसलों की बुवाई की रफ्तार तेज हो जाती है। लेकिन कई क्षेत्रों में मानसून की कम बारिश के चलते रबी की बुवाई की गति धीमी हो गई है। जमीन में नमी की से उन फसलों की बुवाई ज्यादा प्रभावित हुई है, जिनकी बुवाई जमीन की स्वाभाविक नमी के आधार पर होती है।

दलहन फसलों की बुवाई का रकबा पिछले साल जहां 36 लाख हेक्टेयर तक हो चुका था, वह चालू साल में चार लाख हेक्टयर कम होकर केवल 32 लाख हेक्टेयर रह गया है।

दरअसल, मिट्टी की स्वाभाविक नमी में मोटे अनाज, दलहन और तिलहन की बुवाई सबसे पहले की जाती है। जारी आंकड़ों के मुताबिक मोटे अनाज वाली फसलों की बुवाई इस बार बहुत पीछे चल रही है। 

दो अक्तूबर 2018 तक केवल साढ़े नौ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही मोटे अनाज की फसलें बोई जा सकी हैं। जबकि पिछले साल इसी अवधि में कुल 16.52 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। तिलहन फसलों की बुवाई का रकबा जरूर पिछले साल के बराबर दर्ज किया गया है।

कृषि मंत्रालय को पूरी उम्मीद है कि नवंबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह से मौसम में तापमान घटेगा, जिसके बाद ही गेहूं की बुवाई में तेजी आएगी। 

इस साल बारिश तो पर्याप्त हुई है। लेकिन कई इलाकों में बहुत ज्यादा बरसात हुई जबकि कुछ इलाके पानी की समस्या से जूझते रहे हैं। ऐसे ही इलाकों में रबी की फसल की बुवाई के लिए ठंड बढ़ने का इंतजार किया जा रहा है।