नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है। उनका दावा है कि अर्थव्यवस्था में जो गिरावट का दौर जारी है, उसकी वजह रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की नीतियां हैं। जो कि मोदी सरकार के 2014 में सत्ता हासिल करने के दो साल बाद यानी सितंबर 2017 तक अपने पद पर रहे थे।

इस दौरान उन्होंने एनपीए(नॉन प्रॉफिट एसेट्स) की पहचान के लिए नई प्रणाली तैयार कराई। जिसके बाद एनपीए लगातार बढ़ता रहा। राजीव कुमार की दी हुई जानकारी के मुताबिक “ग्रोथ रेट में गिरावट बैंकिंग सेक्टर में एनपीए समस्या बढ़ने की वजह से आ रही थी। जब यह सरकार सत्ता में आई तो यह आंकड़ा करीब 4 लाख करोड़ रुपया था। यह 2017 के मध्य तक बढ़कर साढ़े 10 लाख करोड़ हो गया।

रघुराम राजन ने एनपीए की पहचान के लिए नई प्रणाली बनाई थी, और यह लगातार बढ़ता रहा। एनपीए बढ़ने की वजह से बैंकिंग सेक्टर ने इंडस्ट्री को उधार देना बंद कर दिया। मीडियम और स्मॉल स्केल इंडस्ट्री का क्रेडिट ग्रोथ निगेटिव में चला गया, लार्ज स्केल इंडस्ट्री लिए भी यह 1 से 2.5 फीसदी तक गिर गया। भारतीय इकॉनमी के इतिहास में क्रेडिट में आई यह सबसे बड़ी गिरावट थी। ”

नोटबंदी की वजह से विकास दर गिरने के आरोपों को राजीव कुमार ने पूरी तरह खारिज कर दिया है।

उन्होंने कहा कि  'यह पूरी तरह से गलत अवधारणा है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे लोगों ने भी ऐसा कहा कि नोटबंदी से विकास दर में कमी आई। यदि आप विकास दर के आंकड़ों को देखेंगे तो पाएंगे कि यह नोटबंदी की वजह से नीचे नहीं आया, बल्कि छह तिमाही से यह लगातार नीचे जा रहा था, जिसकी शुरुआत 2015-16 की दूसरी तिमाही में हुई थी, जब विकास दर 9.2 फीसदी थी। इसके बाद हर तिमाही में विकास दर गिरती गई। यह एक ट्रेंड का हिस्सा था, नोटबंदी का झटका नहीं। नोटबंदी और विकास दर में गिरावट के बीच प्रत्यक्ष संबंध का कोई सबूत नहीं है। नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है और आयकर जमा कराने वालों में वृद्धि हुई है।' 

यानी नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार की दी हुई जानकारी के मुताबिक रघुराम राजन ने रिजर्व बैंक का गवर्नर रहते हुए, एनपीए(नॉन प्रॉफिट एसेस्टस) की पहचान की प्रक्रिया ऐसी कर दी, जिससे बैंकों का पैसा फंस गया। जिसके बाद से लगातार अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर जारी है।