राहुल गांधी ने कल कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस्तीफा देने की पेशकश की, लेकिन सभी सदस्यों ने इसके लिए मना किया। लेकिन राहुल के सामने समस्या है कि हार के कारणों के लिए किसे जिम्मेदार बताया जाए या फिर पार्टी के भीतर किस तरह से बदलाव किए जाएं। ताकि पार्टी बीजेपी के बढ़ते जनाधार को रोक सके। राज्यों में कांग्रेस का संगठन एक तरह से समाप्त हो चुका है। पार्टी के पास नेता तो हैं लेकिन कार्यकर्ता नहीं हैं।
लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी की सर्जरी करने को तैयार हैं। लेकिन समस्या ये है कि कहां से इसकी शुरूआत की जाए। इस साल देश के कुछ राज्यों में चुनाव होने हैं और अगले साल भी चुनाव होने हैं। लिहाजा पहले इसकी शुरूआत इन राज्यों से किए जाने की संभावना बन रही है। वहीं अब राहुल ने सबसे पहले राज्यों में नेताओं की गुटबाजी को रोकने के लिए कठोर फैसले लेने की तैयारी में है।
राहुल गांधी ने कल कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस्तीफा देने की पेशकश की, लेकिन सभी सदस्यों ने इसके लिए मना किया। लेकिन राहुल के सामने समस्या है कि हार के कारणों के लिए किसे जिम्मेदार बताया जाए या फिर पार्टी के भीतर किस तरह से बदलाव किए जाएं। ताकि पार्टी बीजेपी के बढ़ते जनाधार को रोक सके। राज्यों में कांग्रेस का संगठन एक तरह से समाप्त हो चुका है। पार्टी के पास नेता तो हैं लेकिन कार्यकर्ता नहीं हैं।
हालांकि उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी की लॉचिंग के बाद इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि पार्टी को फायदा होगा, लेकिन पार्टी का वोट बैंक भी गिर गया है। कई सीटों पर तो पार्टी के प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाएं हैं। वहीं जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी वहां पर भी कांग्रेस को हार मिली है। महज मध्य प्रदेश में कमलनाथ अपने बेटे की सीट को बचाने में कामयाब हुए हैं।
लिहाजा इस करारी हार के बाद पार्टी में बदलाव की मांग उठ रही है। कांग्रेस के ज्यादातर दिग्गज चुनाव हार गए हैं। वहीं लोकसभा में भी नेताओं की कमी हो रही है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश में नेताओं के बीच गुटबाजी के कारण पार्टी को ज्यादा हार मिली है।
यही नहीं आलाकमान को भी जमीन हकीकतों से दूर रखा गया, जिसके कारण रणनीति बनाने में कांग्रेस विफल रही और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व उपमुख्यमंत्री व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट खेमों के बीच समन्वय का पूरी तरह अभाव देखा गया जबकि मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह में गुटबाजी देखी गयी।
कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही मुख्यमंत्री होने के बावजूद पार्टी की हार को नहीं बचा सके। वहीं पंजाब में सिद्धू और कैप्टन के बीच चली आ रही लड़ाई चरम पर है और इसके कारण वहां पर पार्टी को उम्मीद के मुताबिक सीट नहीं मिले। कुछ ऐसा ही हाल हरियाणा में भी है। यहां पर हुड्डा और तंवर के बीच चली आ रही लड़ाई के कारण पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
Last Updated May 26, 2019, 11:10 AM IST