कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार की जिम्मेदारी शनिवार को पार्टी कार्यसमिति में लेते हुए इस्तीफा देने की पेशकश की। कार्यसमिति के अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इस्तीफे की पेशकश को नकारते हुए सामूहिक जिम्मेदारी लेते हुए फैसला लिया कि अब कांग्रेस पार्टी एक जिम्मेदार व सकारात्मक विपक्ष के रूप में अपना कर्तव्य निभाएगी। लिहाजा अब जब नरेन्द्र मोदी सरकार अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने जा रही है कांग्रेस पार्टी देशवासियों की समस्याओं को सरकार के सामने रख उनके प्रति सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने का काम करेगी।

खासबात है कि कांग्रेस पार्टी की कार्यसमिति ने उन चुनौतियों, विफलताओं और कमियों को स्वीकार किया है, जिनकी वजह से लोकसभा चुनावों में उसे ऐसा नतीजा देखने को मिला। लिहाजा कांग्रेस कार्यसमिति ने पार्टी के प्रत्येक स्तर पर संपूर्ण आत्मचिंतन के साथ-साथ कांग्रेस अध्यक्ष को पार्टी के पूरे ढांचे में बड़ा परिवर्तन करने के लिए अदिकृत किया है जिससे अगले पांच साल के लिए पार्टी एक नई सोच के साथ राजनीति की मुख्यधारा में आने की कवायद कर सके। 

लिहाजा मोदी सरकार के पहले पांच साल के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस ने अपनी कार्यशैली को नकार दिया है। जहां इसी दौरान राहुल गांधी को पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी के साथ दायित्व मिला कि वह  कांग्रेस पार्टी को 2019 में वापस सत्ता में लाने का काम करें। लेकिन इस दायित्व का निर्वाह करने में जहां कांग्रेस को महज सकारात्म विपक्ष की भूमिका अदा करनी थी, पार्टी ने महज आरोप-प्रत्यारोप की रणनीति पर काम किया। 

मामला चाहे राष्ट्रीय सुरक्षा का रहा हो या फिर गरीबी उन्मूलन का, जब भी नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान कोई अहम फैसला लेने का समय आया तो राहुल गांधी के नेतृत्व में आधारहीन विरोध की रणनीति पर काम किया गया। एक तरफ जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी विदेश यात्राओं पर देश की नई छवि के निर्माण का प्रयास कर रहे थे और देश में निवेश लाने की कवायद में जुटे थे वहीं कांग्रेस अध्यक्ष इन कवायदों को राजनीतिक चश्मे से देखने का काम करते रहे। इस दौरान न तो राहुल गांधी को और न ही पार्टी के अन्य किसी नेता को राजनीति में विपक्ष की सकारात्मक भूमिका की याद आई।

लोकसभा चुनाव का ये नतीजा जब कांग्रेस पार्टी के सामने आया तो स्वाभाविक है कि पूर्व के पांच साल की उसकी रणनीति को देश के वोटरों ने पूरी तरह से खारिज कर दिया। लिहाजा यह भी स्वाभाविक है कि जब नकारात्मक रणनीति ने सत्ता की चाभी हाथ नहीं लगी तो राहुल गांधी अब सकारात्मक विपक्ष की भूमिका अदा करने की दलील दे रहे हैं।
अब कांग्रेस पार्टी कह रही है कि चुनाव में हार का सामना करने के बाद उसे अनेक ऐसी चुनौतियों का ध्यान आ रहा है जिनका हल मोदी सरकार को अपने दूसरे कार्यकाल में निकालने की जरूरत है।

चुनाव बाद क्या समझी कांग्रेस?

1.    ईरान पर प्रतिबंध लगने के बाद तेल की बढ़ती कीमतें एवं बढ़ती महंगाई एक बड़ी समस्या है। 
2.    बैंकिंग प्रणाली गंभीर स्थिति में है और एनपीए पिछले पाँच सालों में अनियंत्रित तरीके से बढ़कर 12 लाख करोड़ रु. तक पहुंच गए हैं, जिससे बैंकों की स्थिरता खतरे में है। 
3.    एनबीएफसी, जिनमें लोगों की मेहनत की कमाई जमा है, उनकी आर्थिक स्थिरता पर गंभीर सवाल खड़े हैं। 
4.    निजी निवेश की कमी और कंज़्यूमर गूड्स की बिक्री में तीव्र गिरावट के साथ अर्थव्यवस्था में मंदी का संकट मंडरा रहा है। 
5.    नौकरियों के संकट का कोई समाधान नहीं निकल रहा, जिससे युवाओं का भविष्य खतरे में है।
6.    आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में सूखे की स्थिति के कारण देश में कृषि संकट और बढ़ता जा रहा है। 
7.    हमारी संस्थाएं भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की पहचान हैं, पर आज उनकी निष्पक्षता व अखंडता पर खतरे का बादल मंडरा रहे हैं। 
8.    देश में सामाजिक सदभाव व भाईचारे पर लगातार आक्रमण हो रहा है। 


कांग्रेस पार्टी की इस नई समझ से साफ है कि विगत चुनावों में हार का सामना इसलिए करना पड़ा कि उसकी रणनीति में सकारात्मकता की कमी रही। अब उम्मीद है इस नव जागृत चेतना के सहारे कांग्रेस पार्टी वाकई विपक्ष की उस भूमिका का निर्वाह करेगी जिसे हम लोकतंत्र की पाठ्य पुस्तकों में पढ़ते आए हैं।