अशोक तंवर को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। राहुल गांधी तंवर पर भरोसा करते थे, लिहाजा उन्होंने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की दावेदारी को दरकिनार कर अशोक तंवर को राज्य की कमान सौंपी। लेकिन कांग्रेस में राहुल गांधी के अध्यक्ष के पद से हट जाने के बाद बागी हो चुके हुड्डा को तवज्जो देते हुए विधायक दल का नेता के साथ ही चुनाव समिति की कमान हुड्डा को दी गई।
चंडीगढ़। हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व सांसद अशोक तंवर खामोश होकर हरियाणा में चुनाव से पहले कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। तंवर बागी हैं, लेकिन खामोश हैं। फिलहाल राज्य में तंवर की खामोशी कांग्रेस के भीतर खलबली मचाए हुए है। लिहाजा चुनाव में कांग्रेस को इसका सीधेतौर पर नुकसान हो सकता है।
अशोक तंवर को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। राहुल गांधी तंवर पर भरोसा करते थे, लिहाजा उन्होंने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की दावेदारी को दरकिनार कर अशोक तंवर को राज्य की कमान सौंपी। लेकिन कांग्रेस में राहुल गांधी के अध्यक्ष के पद से हट जाने के बाद बागी हो चुके हुड्डा को तवज्जो देते हुए विधायक दल का नेता के साथ ही चुनाव समिति की कमान हुड्डा को दी गई। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा को बनाया गया।
लेकिन इन दोनों नेताओं की जुगलबंदी ने तंवर को राज्य की राजनीति में हाशिए पर ला दिया। वहीं सोनिया ने तंवर को कोई पद नहीं दिया। लिहाजा अब तंवर नाराज हैं और पार्टी की किसी बैठक में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। तंवर राज्य में दलित वर्ग से आते हैं और पिछले कुछ सालों के दौरान उन्होंने दलितों में अपनी अच्छी पहचान बनाई है जबकि हुड्डा जाट वर्ग से आते हैं। इन दोनों नेताओं की दुश्मनी जगजाहिर है। फिलहाल तंवर शांत और खामोश रहकर हुड्डा और शैलजा के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं।
वह शैलजा की बैठकों में नहीं जा रहे हैं। लेकिन पार्टी के जानकार कह रहे हैं कि तंवर की ये खामोशी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है। जिसको शायद पार्टी अभी तक नहीं समझ पा रही है। फिलहाल राज्य में 21 अक्टूबर को चुनाव होने हैं। जबकि 2014 के चुनाव में पार्टी राज्य में महज 14 सीटें ही जीत सकी थी और सत्ता से बाहर हो गई थी। फिलहाल राज्य में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है। जिसका फायदा भाजपा को होना तय है।
Last Updated Sep 30, 2019, 7:45 PM IST