आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा गठबंधन से फिलहाल अजीत सिंह की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोकदल बाहर हो गयी है. रालोद इस गठबंधन में पांच सीटें चाह रहा था, लेकिन सपा और बसपा के गठबंधन ने उन्हें दो सीटें देने की बात कही. लिहाजा अब रालोद के पास अपना अस्तित्व बचाने के लिए भाजपा और कांग्रेस की विकल्प बचा है. या फिर आने वाले समय में सपा उन्हें अपनी तरफ से दो सीट देकर इस गठबंधन में शामिल कर सकता है. हालांकि इसकी उम्मीद कम ही हैं.

असल में रालोद इस गठबंधन में जगह मिलने पर काफी खुश था. लेकिन आज लखनऊ में सपा और बसपा के बीच बन गठबंधन की घोषणा में रालोद इस पूरे परिदृश्य से गायब था. सपा के सूत्रों का कहना है कि रालोद को शामिल करने के लिए दो कारण बताए जा रहे हैं. पहला तो रालोद पांच सीटें चाह रहा था. जबकि गठबंधन उन्हें  दो सीटें देने के लिए तैयार था.

दूसरा अजीत सिंह की विश्वनीयता को लेकर गठबंधन के दलों में शक था. क्योंकि अजीत सिंह के बारे में कहा जाता है कि जहां भी उन्हें सरकार में शामिल होने के मौका मिलता है. वह उस गठबंधन में चले जाते हैं. अजीत सिंह कांग्रेस के साथ ही भाजपा के साथ सरकार में रह चुके हैं. लिहाजा सपा और बसपा के नेताओं को लगता है कि अगर केन्द्र में भाजपा को कुछ सांसद की जरूरत पड़ी तो अजीत सिंह सबसे पहले उसके साथ जा सकते हैं.

लिहाजा दोनों दलों ने उन्हें कम सीटें देकर सीधे तौर नाराज भी नहीं करना चाहा ताकि कम सीटें मिलने पर रालोद स्वयं इस गठबंधन से बाहर हो जाए.लिहाजा अब गठबंधन में सम्मानजनक सीटें न मिलने से खफा रालोद दूसरे विकल्पों पर विचार शुरू कर दिया है. सीटों के बंटवारे को लेकर रालोद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव और मायावती से भी मुलाकात की थी जयंत ने पश्चिमी यूपी की पांच लोकसभा सीटों पर दावा पेश किया था. इनमें बागपत, अमरोहा, हाथरस, मुजफ्फरनगर और मथुरा लोकसभा सीटें थीं.

जबकि दोनों दलों ने बागपत और मथुरा की सीट के लिए रजामंदी दी थी. दो सीट मिलने के कारण पार्टी के भीतर बगावत होने की डर से रालोद ज्यादा सीटें चाह रहा था. रालोद में इन दो सीटों पर अजीत सिंह और जयंत चौधरी ही लड़ सकते थे. रालोद की नाराजगी के बाद सपा एक सीट पर और बढ़ी है. असल में रालोद का दावा था कि वेस्ट यूपी में दस जाट बाहुल्य सीटें हैं, जो पूरी तरह से उलटफेर कर सकते हैं. पिछला लोकसभा चुनाव रालोद ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था और उसका खाता भी राज्य में नहीं खुल सका था.

जबकि कांग्रेस ने महज दो सीटें ही जीती. जबकि विधानसभा चुनाव रालोद ने सपा के साथ मिलकर लड़ा और उसका एक मात्र विधायक जीता और वह भी बाद में भाजपा में शामिल हो गया. अब सपा-बसपा के गठबंधन में जगह न मिलने के कारण रालोद अन्य विकल्पों की तलाश में जुटा है. रालोद को उम्मीद है कि सपा और बसपा के गठबंधन बन जाने के कारण भाजपा को भी सहयोगियों की जरूरत है. लिहाजा भाजपा उसके लिए बड़ा विकल्प हो सकता है. जहां उसे सम्मानजनक सीटें मिल सकती हैं. वहीं भाजपा के लिए भी ये फायदे का सौदा हो सकता है. क्योंकि जाट वोट बैंक के भाजपा में आने के कारण भाजपा की जीत पश्चिमी उत्तर में हो सकती है.