पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अलगाववादियों के खिलाफ कार्रवाई तेज करते हुए 18 हुर्रियत नेताओं को दी गई सुरक्षा वापस ले ली है। इसके साथ ही 155 से ज्यादा राजनीतिज्ञों का सुरक्षा कवच भी छीन लिया गया है। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के करीबी वाहिद मुफ्ती और पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल भी शामिल हैं। इससे पहले भी सरकार ने चार अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ले ली थी। बुधवार की कार्रवाई की बाद सभी 22 अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा छिन गई है। 

हैरानी की बात है कि इस सूची में पाकिस्तान का समर्थन करने वाले अलगाववादियों सैयद अली शाह गिलानी और जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक का भी नाम शामिल है, जिन्होंने हमेशा कहा है कि उन्हें कोई सुरक्षा नहीं मिलती है। इसमें एक साल से जेल में बंद शाहिद-उल-इस्लाम और नइम खान का भी नाम है। राज्य के मुख्य सचिव बीवी आर. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा समीक्षा बैठक में यह फैसला लिया गया।

जिन प्रमुख हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापस ली गई है उनमें एसएएस गिलानी, अगा सैयद मौसवी, मौलवी अब्बास अंसारी, यासीन मलिक, सलीम गिलानी, शाहिद उल इस्लाम, जफर अकबर भट, नईम अहमद खान, फारुख अहमद किचलू, मसरूर अब्बास अंसारी, अगा सैयद अब्दुल हुसैन, अब्दुल गनी शाह, मोहम्मद मुसादिक भट और मुख्तार अहमद वजा शामिल हैं। इन अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में सौ से ज्यादा गाड़ियां लगी थीं। इसके अलावा 1000 पुलिसकर्मी तैनात थे। इससे पहले 17 फरवरी को भी राज्य सरकार ने अलगाववादी नेताओं मीरवाइज उमर फारूक, अब्दुल गनी भट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी और शबीर अहमद शाह की सुरक्षा वापस लेने का फैसला किया था। 

जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा सुरक्षा वापस लिए जाने के बाद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की प्रतिक्रिया सामने आई थी। एक बयान में हुर्रियत की ओर से कहा गया कि उन्होंने कभी सुरक्षा नहीं मांगी थी। मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने कहा, ‘सरकार ने खुद ही अलगाववादी नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराने का फैसला किया था, जिसकी कभी मांग नहीं की गई।’ मीरवाइज उमर फारूक, उन चार अलगाववादी नेताओं में शामिल थे, जिनकी सुरक्षा वापस ली गई थी। बयान में आगे कहा गया, ‘मीरवाइज उमर फारूक ने वास्तव में कई बार कहा कि वह चाहते हैं कि सुरक्षा वापस ले ली जाए। सुरक्षा वापस लेने के फैसले से न तो अलगाववादी नेताओं के रुख में बदलाव आएगा और न ही इससे जमीनी हालात पर कोई असर पड़ेगा।’