कोलकाता। पश्चिम बंगाल में तीन विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव पीएम नरेन्द्र मोदी और टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की असल परीक्षा साबित होंगे। इन सीटों पर जो जीत हासिल करेगा उसके पक्ष में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए माहौल बनेगा। लिहाजा दोनों दलों ने इसकी तैयारी काफी अरसे शुरू कर दी है।

पश्चिम बंगाल में नंवबर में विधानसभा की तीन सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। ये चुनाव सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर दोनों दल आमने सामने होंगे। क्योंकि लोकसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा ने प्रदर्शन किया था और उसके बाद वह लगातार टीएमसी के विधायकों और नेताओं को तोड़ रही थी। उससे राज्य में भाजपा की ताकत बढ़ती ही जा रही थी।  लेकिन ये उपचुनाव दोनों दलों की जमीन को बताएंगे। क्योंकि राज्य में अभी भी टीएमसी बहुत मजबूत है।

हालांकि अन्य विपक्षी दल कांग्रेस और वामदल काफी पीछे हैं। लिहाजा मुकाबला टीएमसी और भाजपा के बीच माना जा रहा है। राज्य की जिन तीन सीटों के लिए उपचुनाव होने वाले उनमें से एक-एक पर तृणमूल कांग्रेस, भाजपा और कांग्रेस का कब्जा रहा है। लिहाजा तीनों को अपनी अपनी सीट बचाने की जिम्मेदारी है। राज्य में जिन तीन सीटों पर उपचुनाव होने हैं उसमें पश्चिम मेदिनीपुर जिले की खड़गपुर, नदिया जिले की करीमपुर और उत्तर दिनाजपुर की कालियगंज सीट है।

कालियगंज सीट कांग्रेस विधायक प्रमथनाथ राय के निधन से खाली हुई है जबकि खड़गपुर सीट से विधायक दिलीप घोष लोकसभा सदस्य बन गए हैं जबकि करीमपुर की टीएमसी विधायक महुआ मित्रा भी कृष्णनगर संसदीय सीट से सांसद बन चुकी हैं। जिसके बाद दोनों ने विधानसभा से इस्तीफा दिया है। हालांकि टीएमसी इन उपचुनावों के जरिए सभी विपक्षी दलों को एकजुट कर भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरना चाहती है। वहीं भाजपा अकेले चुनाव लड़ रही है। हालांकि राज्य में कांग्रेस और माकपा ने मिलकर उपचुनाव लड़ने का फैसला किया है। जिसका सीधा नुकसान टीएमसी को होगा। दोनों दलों के बीच सीटों के समझौते के तहत कांग्रेस के कोटे में खड़गपुर व कालियगंज और वाममोर्चा के हिस्से में खड़गपुर सीट आई है।