तारीख-23 मार्च 1931
समय-शाम 7.30 बजे
स्थान-लाहौर जेल
आज से करीब 88 साल पहले देश के सपूत भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को अंग्रेज सरकार ने फांसी दी थी। पूरे देश शहीदों की याद में आज शहीदी दिवस मनाता है। जब अंग्रेज सरकार ने सरदार भगत सिंह को फांसी दी थी उस वक्त उनकी उम्र महज 23 साल थी। उनके देशभक्ति का जज्बा इसी बात से समझा जा सकता था कि उन्होंने फांस की सजा भी हंसते हंसते स्वीकार की। अंग्रेज सरकार इन आजादी के नायकों से इतना डर गयी थी कि उसने फांसी के तय समय से 11 घंटे पहले फांसी दी और उनके परिवार के लोगों को उनके शवों को नहीं सौंपा। हालांकि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फांसी के बाद पूरे देश में महात्मा गांधी का भी विरोध हुआ। क्योंकि लोगों का कहना था कि अगर गांधी चाहते तो तीनों आंदोलनकारियों की फांसी की सजा माफ हो सकती थी।

भगत सिंह अंग्रेज सरकार के लिए उस वक्त चुनौती बन गए थे और अंग्रेज सरकार ने उन्हें महात्मा गांधी से बड़ी चुनौती मानते थे। लिहाजा जब आजादी के नायकों को फांसी दी गयी। उसके बाद उनके शवों को परिवार वालों को नहीं सौंपा गया और उन्हें क्षत-विक्षत कर सतलुज नदी में बहाया गया। असल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की जनता में बढ़ती लोकप्रियता ने अंग्रेज सरकार को परेशान कर दिया। सरकार अच्छी तरह से जानती थी अगर उन्हें फांसी दी गयी तो देश में अंग्रेज सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू हो जाएगा। लिहाजा अंग्रेज सरकार ने भगतसिंह को फांसी देने के लिए पूरा सीक्रेट प्लान तैयार किया गया और 23 मार्च यानी फांसी के दिन से सिर्फ 11 घंटे पहले ये तय किया गया कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को कब फांसी देनी है।

अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को उसी दिन फांसी की खबर दी, जिस दिन उन्हें फांसी पर चढ़ाया जाना था। इसके लिए अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च को शाम 7.30 बजे का समय तैयार किया। लेकिन तीनों आंदोलनकारियों के चेहरे पर फांसी का कोई शिकन भी नहीं था। आजादी के तीनों नायक फांसी पर जाने से पहले वे लेनिन की नहीं बल्कि राम प्रसाद बिस्मिल की जीवनी पढ़ रहे थे। कहा जाता है कि जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फांसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले। फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले -ठीक है अब चलो।

अंग्रेज सरकार ने तीनों आंदोलनकारियों की फांसी खबर को बहुत गुप्त रखा था, लेकिन फिर भी ये खबर फैल गई और लाहौर जेल केबाहर लोग जमा होने लगे। अंग्रेज सरकार को डर था कि इस समय अगर उनके शव परिवार को सौंपे गए तो क्रांति भड़क सकती है। लिहाजा अंग्रेज सरकार ने उनके शवों को बोरियों में भरकर जेल से बाहर निकाला गया। उसके बाद फिरोजपुर की ओर ले जाया गया, जहां पर मिट्टी का तेल डालकर इन्हें जलाया गया। इससे घबराकर अंग्रेजों ने अधजली लाशों के टुकड़ों को उठाया और सतलुज नदी में फेंककर भाग गये। इसके बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के परिजनों ने शवों को टुकड़ों को नदी से निकालाकर उनका विधिवत अंतिम संस्कार किया।