नई दिल्ली— अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े 1994 के इस्माइल फारूकी मामले को पांच जजों वाली पीठ को भेजने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। प्रधान न्यायाधीन दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की तीन जजों वाली बेंच ने यह फैसला 2:1 (पक्ष-विपक्ष) के हिसाब से दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण इस मामले में एकमत रहे। जस्टिस अशोक भूषण की तरफ से दोनों जजों के फैसले को पढ़ा गया।

अयोध्या में मस्जिद निर्माण से लेकर अब तक क्या रहा—

1528: बाबर ने यहां एक मस्जिद का निर्माण कराया जिसे बाबरी मस्जिद कहते हैं। हिंदुओं का दावा है कि इसी जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था।

1853: हिंदुओं ने आरोप लगाया कि भगवान राम का मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण हुआ। मुद्दे पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई।

1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी करके विवादित भूमि के आंतरिक और बाहरी परिसर में मुस्लिमों और हिदुओं को अलग-अलग प्रार्थनाओं की इजाजत दे दी।

1885: मामला पहली बार अदालत में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की।

23 दिसंबर 1949: करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे। मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया।

16 जनवरी 1950: गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी।

5 दिसंबर 1950: महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया। मस्जिद को ‘ढांचा’ नाम दिया गया।

17 दिसंबर 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया।

18 दिसंबर 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया।

1984: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया।

1 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। ताले दोबारा खोले गए। विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) मंदिर आंदोलन में शामिल हुई 

1 जुलाई 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया।

9 नवंबर 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने शिलान्यास की इजाजत दी।

25 सितंबर 1990: बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया।

6 दिसंबर 1992: हजारों की संख्या में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद ढाह दिया। इसके स्थान पर एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया।

16 दिसंबर 1992: जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन हुआ।

अप्रैल 2002: विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।

मार्च-अगस्त 2003: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे।

सितंबर 2003: अदालत ने मस्जिद के विध्वंस को उकसाने के आरोपी सात नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया।

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने प्रमनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज किया।

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ने विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में जमीन बंटी।

9 मई 2011: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।

27 सितंबर 2018: सुप्रीम कोर्ट ने मामला संवैधानिक बेंच को सौंपने से इनकार किया, 29 अक्टूबर से रोजाना होगी सुनवाई।