नई दिल्ली:  उन शब्दों का महत्व बेहद ज्यादा हो जाता है जिसे कोई व्यक्ति विशेष इन्हें सीधा अपने मुंह से कहता है। 
सोशल मीडिया पर प्रचारित हो रहे एक कश्मीरी आतंकवादी मन्नान वानी ने बंदूक की तरफ अपनी यात्रा में एएमयू की भूमिका की सराहना की है। मन्नान वही आतंकवादी है जिसने इस विश्वविद्यालय में पीएचडी छोड़कर आतंकी बनने का रास्ता चुना था। वह अक्टूबर 2018 में कुपवाड़ा में हुई एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया। 

वानी ने विश्वविद्यालय के उस माहौल की सराहना की है, जिसने एक प्रतीक के तौर पर मुसलमानों पर कथित जुल्म के प्रति उसके विचारों को पुख्ता किया। ‘वॉयस फ्रॉम हिल्स’ शीर्षक वाली यह चिट्ठी 14 सितंबर से प्रचारित की जा रही है। 

वानी ने जिन्ना की तस्वीर पर हुए विवाद की याद दिलाते हुए लिखा है कि अभी भी वहां लटकी हुई यह तस्वीर भारत के दूसरे विभाजन का प्रतीक है। 

दिसचस्प यह है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का छात्र संगठन ने अभी हाल ही में पुलवामा में आतंकी हमले में 40 सीआरपीएफ जवानों के मारे जाने के बाद सरकार द्वारा जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध लगाए जाने के कदम का विरोध भी किया है। उन्होंने एक पत्र भी जारी किया जिसमें अलगाववादी संगठनों की तारीफ की गई है। 

आतंक की ओर वानी की यात्रा में एएमयू की भूमिका
वानी ने लिखा है कि 2009 में जब उसका चयन कश्मीर यूनिवर्सिटी से भारत के इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में हुआ, तो उसने 'घुटन' का एहसास किया 

एएएमयू की अल्पसंख्यक दर्जे पर किए गए कानूनी दावे की आलोचना करते हुए वानी ने लिखा कि ‘एएमयू ने कानून के सामने अपने इतिहास का मुकाबला किया’ 

एएमयू के अंदर के फैली प्रचलित मान्यताओं से प्रभावित होकर इस आतंकी ने जो विचार रखे वह इतिहास का गलत नजरिया रखते हैं। उसने लिखा कि ‘मेरी यह सुंदर मातृ संस्था मुसलमानों के रक्त से पैदा हुई और अब हिंदुत्व का दमन झेल रही है।’
वह आगे लिखता है कि ‘मुझे यकीन है कि संस्थापक के मूल विचार इस फासीवादी लहर पर काबू पा लेंगे और मेरा बागीचा फिर से खिल उठेगा।’

वानी अक्सर अपने साथ विश्वविद्यालय के छात्रों को लेकर बाहर जाता था। जहां वह उनके साथ भोजन करते हुए उन्हें अपने आतंकी विचारों के रंग में रंगने की कोशिश भी करता था।
 वानी के शब्दों से यह साबित होता है कि उसका एएमयू आने का मूल उद्देश्य शिक्षा नहीं, बल्कि उस स्थान पर पहुंचना था जहां पाकिस्तान के संस्थापक की तस्वीर अभी तक लटकी हुई है। 
 
वानी लिखता है कि ‘मेरा विश्वविद्यालय का जीवन एमफिल या पीएचडी से कहीं परे था। मैं राजनीतिक रुप से सक्रिय था। यहां के ढाबाओं में मुझे भोजन, विचार और प्रेरणा तीनो मिलती थी। 
वानी लिखता है कि ‘मैंने उन अभियानों का नेतृत्व किया, जो छात्र नेताओं को सिंहासन तक पहुंचाते हैं, और विवादित छात्र संघ के हॉल तक पहुंचते हैं जहां पाकिस्तान के संस्थापक की तस्वीर अभी भी लटकी हुई है’।

वानी कहता है कि भारत के मुसलमानों को शायद उसी पहचान की जरुरत है जिसके प्रतीक जिन्ना हैं। उसके लिए एएमयू में जिन्ना की फोटो उस पहचान की प्रतीक है जिसकी जरुरत भारतीय मुसमानों को थरुर के बढ़ रहे भारत के मुताबिक हो सकती है। गांधी और नेहरु के भारत ने हमें सच्चर रिपोर्ट दी; नया भारत तो भीड़ के हाथों मारे गए लोगों का शोक संदेश तैयार कर रहा है।   
 
 एएमयू का देश विरोधी पत्र 

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यातय छात्र संघ(एएमयूएसयू) के अध्यक्ष सलमान इम्तियाज ने संस्था के लेटरहेड पर एक पत्र जारी करके कश्मीर की कथित रुप से लोकप्रिय संस्था पर प्रतिबंध का विरोध किया, जो अपनी ‘सामाजिक सेवा के कार्यों को अंजाम देती थी। यह संगठन हिंसाग्रस्त इलाके के पीड़ितों की मदद, राज्य के अनाथों और विधवाओं के जीने का सहारा था’। 
 
सूत्रों के मुताबिक इसमें एक प्रोफेसर की भूमिका भी जांच के दायरे में है। 

जब माय नेशन ने इम्तियाज से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने कहा कि वह बाद में फोन करके अपना जवाब देंगे। अपने पत्र में एएमयू के छात्र संगठन ने राष्ट्रवाद को एक खतरनाक विचार करार दिया है। 

जमाते इस्लामी के आतंकी संगठनों से संबंध को झुठलाते हुए एएमयू के छात्र संगठन ने उसपर प्रतिबंध को लोकसभा चुनाव से पहले सरकार की बदले की कार्रवाई करार दिया। उन्होंने कहा कि जमात ए इस्लामी एक सामाजिक-धार्मिक और राजनैतिक संगठन है और इसपर प्रतिबंध आश्चर्यजनक है।
 
 इसमें कहा गया है कि भारत उथल पुथल से गुजर रहा है और मोदी सरकार ने अघोषित आपातकाल लागू कर रखा है, इसकी वजह से विरोध की सभी आवाजें दबाई जा रही हैं और राष्ट्रवाद का एक खतरनाक स्वरुप सामने आया है। 

इम्तियाज ने आगे कहा कि जमात ए इस्लामी अपने कानून के मुताबिक चल रहा था। यह कोई छिपा हुआ या फिर आतंकवादी संगठन नहीं था। 

‘बीजेपी का शासन अब खत्म होने जा रहा है। संसदीय चुनाव मात्र कुछ हफ्ते दूर हैं। जमात पर प्रतिबंध गैरकानूनी गतिविधियों से संबंधित होने की बजाए कट्टर हिंदूवादी राजनीति के प्रभाव को दर्शाता है। लगभग सभी राजनीतिक दलों जिसमें नेशनल कांफ्रेन्स, पीडीपी और कांग्रेस भी शामिल हैं, सबने प्रतिबंध का विरोध किया। कश्मीर के धार्मिक नेताओं, सामाजिक संगठनों और व्यापारियों ने भी इस प्रतिबंध को राजनीति से प्रेरित बताते हुए इसकी आलोचना की।’

एएमयू में आतंकवाद का समर्थन

पुलवामा में हुए हमले के कुछ ही समय के बाद एएमयू के कश्मीरी छात्र बसीम हिलाल ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के पक्ष में एक ट्विट लिखा था जिसमें उसने लिखा: ‘हाउ इज द जैश? ग्रेट सर।’

उसने यह डायलॉग सर्जिकल स्ट्राइक बनी मशहूर फिल्म उरी से लिया था। बाद में हिलाल को विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया और उसके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई।