पटना। राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। राज्य में इस साल के आखिर तक चुनाव हो सकते हैं। लिहाजा राज्य के छोटे दल भले ही जीतने की स्थिति में न हों, लेकिन उलटफेर जरूर कर सकते हैं। लेकिन छोटे दल बड़े दलों के साथ चुनावी समझौते कर अपनी नैय्या पार कराना चाहते हैं और इनके नेता छटपटा रहे हैं ताकि कोई किनारा मिल जाए।


पिछले विधानसभा चुनाव में 21 सीटों पर चुनाव लड़ चुके हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को इस बार और अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है।  हालांकि उसका विवाद राजद से चल रहा है और अगर वह गठबंधन में हम रहता तो इस बार उसे ज्यादा सीटें चाहिए। जबकि राजद इसके लिए तैयार नहीं है। वहीं मांझी की जदयू से बातचीच चल रही है और जदयू चाहता है कि वह तालमेल के बदले विलय करे। इससे जीतन राम मांझी की अपनी सीट सुरक्षित हो जाएगी।

वहीं कुछ करीबी नेताओं को पार्टी में जिम्मेदारी मिल जाएगी।  हालांकि अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है। लेकिन मांझी दो जुलाई तक राजद के  फैसले का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि साफ हो चुका है कि राजद मांझी की मांगों को नहीं मानेगा।  क्योंकि तेजस्वी यादव अपने धुर विरोधी मांझी को गठबंधन में रखने के पक्ष में नहीं हैं। मांझी 2015 में एनडीए के साथ थे और दो जगहों से चुनाव लड़े थे और चुनाव में उन्हें जीत नहीं मिली।  

वहीं वह लोकसभा चुनाव में एनडीए के विरोधी महागठबंधन के लिए भी फायदेमंद नहीं रहे और हम के सभी तीन उम्मीदवार हार गए। हम के साथ ही लोक जन शक्ति पार्टी राज्य में कम सीटें भाजपा और जदयू द्वारा दिए जाने की आशंका से परेशान है। पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान बड़े बड़ेदावे कर रहे हैं, लेकिन उन्हें राज्य में कम सीटें मिलने की आशंका है।हालांकि उन्होंने राज्य में कार्यकर्ताओं से चुनाव की तैयारियों में जुटने को कह दिया है।  राज्य में सीटों के बंटवारे पर  भाजपा और जदयू के बीच चल रही बातचीत में  अभी तक लोजपा को शामिल नहीं किया गया है। लिहाजा नेतृत्व की ओर से अपने दम पर चुनाव लड़ने का विकल्प खुला रखने का भरोसा दिया जा रहा है।

वहीं  उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी के लिए कांग्रेस ने विलय का प्रस्ताव रखा है। राज्य  में रालोसपा खत्म हो गई है और पार्टी का जनाधार भी  नहीं बचा है। लिहाजा कुशवाहा इस प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं।  क्योंकि एनडीए से अलग होने के बाद उनकी ताकत कम हो गई है और लोकसभा चुनाव में उन्हें बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। कभी  नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले उपेंद्र अब उनके विरोधी हैं।। लिहाजा वह एनडीए में तो नहीं जाएंगे। लेकिन वह कांग्रेस के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं।