लोकसभा चुनाव में जबरदस्त हार मिलने के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन को जल्द ही एक और अग्निपरीक्षा से रूबरू होना पड़ेगा। असल में राज्य में विधानसभा की 11 सीटों पर उपचुनाव चुनाव होना है। इस उपचुनाव में बीएसपी भी लड़ेगी या फिर इस बार भी वह उपचुनाव से दूर रह कर एसपी को समर्थन देगी, इसका पर अभी संशय बना हुआ है।

इस साल उत्तर प्रदेश विधानसभा की 11 सीटों पर उपचुनाव होना है। ये सीटें विधायकों के सांसद बनने के बाद खाली हुई हैं। इनमें तीन मंत्री भी सांसद चुने गए हैं। जो 11 सीटें खाली हो रही हैं उसमें आठ बीजेपी, एक अपना दल, एक-एक एसपी और बीएसपी के विधायक हैं।

जिन सीटों पर अगले छह महीने में चुनाव होने हैं वह टूंडला (सु.), गोविंद नगर, लखनऊ कैंट, प्रतापगढ़, गंगोह, मानिकपुर चित्रकूट, जैदपुर (सुरक्षित), बलहा (सुरक्षित), इगलास, रामपुर सदर और जलालपुर है। इस उपचुनाव में एक बार फिर गठबंधन की परीक्षा होगी।

इस उपचुनाव में ये भी साफ हो जाएगा कि बीएसपी चुनाव मैदान में उतरेगी या फिर वह एसपी प्रत्याशी को ही समर्थन देगी। जानकारी के मुताबिक बीएसपी विधानसभा में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए उपचुनाव में उतर सकती है। अभी तक विधानसभा में बीएसपी के 19 विधायक हैं जबकि एसपी के 48 विधायक हैं।

इन उपचुनावों का सबसे ज्यादा फायदा 2020 को होने वाले राज्यसभा के चुनाव हैं। अगर एसपी और बीएसपी अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने में कामयाब रही तो इसका फायदा उसे राज्यसभा के चुनाव में मिल सकता है। आमतौर पर बसपा उपचुनाव से दूर रहती आई है।

पार्टी का मानना है कि उपचुनाव में ऊर्जा व समय बर्बाद होता है। गौरतलब है कि राज्य में 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद खाली हुई 12 विधानसभा सीटों पर भी बीएसपी ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे। हालांकि बीएसपी नगर निगम के चुनाव में भी नहीं उतरती थी।

लेकिन 2017 में हुए नगर निगम चुनाव में बीएसपी ने अपने प्रत्याशी उतारे और वह मुरादाबाद और मेरठ में मेयर का चुनाव जीतने में सफल हुई। यही नहीं बीएसपी ने पिछले साल बसपा ने कैराना, गोरखपुर व फूलपुर उपचुनाव नहीं लड़ा था बल्कि एसपी को समर्थन दिया।