देश में लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान गुरुवार को होगा। पूरे देश में 91 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहा है, लेकिन पूरे देश की निगाह उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर है। जहां पर बीजेपी के साथ ही एसपी-बीएसपी गठबंधन की अग्निपरीक्षा होगी। क्योंकि जाट लैंड कहे जाने वाला पश्चिम उत्तर प्रदेश ने ही पिछले लोकसभा और उसके बाद यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी का भविष्य तय किया था। 

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी तथा राष्ट्रीय लोकदल के बीच चुनावी गठबंधन हुआ है। जिसमें बीएसपी 38, एसपी 37 और आरएलडी 3 सीटों पर चुनाव लड़ी रही है। हालांकि एसपी-बीएसपी ने कांग्रेस के लिए भी दो सीटें अमेठी और रायबरेली छोड़ी हैं। गठबंधन यहां पर कोई प्रत्याशी नहीं उतार रहा है। जबकि बीजेपी अपने सहयोगियों के साथ राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। गुरुवार को उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर चुनाव होना है। ये सीटें पश्चिम उत्तर प्रदेश की हैं, जहां पर गठबंधन के साथ ही कांग्रेस भी चुनाव लड़ रही है।

लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश ही एसपी-बीएसपी गठबंधन के लिए एक तरह का प्रयोगशाला साबित होगा, जहां पर उसका भविष्य तय होगा। गठबंधन जिस मुस्लिम और जाट गठजोड़ के सहारे इस किले को फतह करने का दावा कर रहा है। क्या वह इस बार इसकी तरफ आएगा। या फिर कांग्रेस की तरफ जाएगा। यहीं नहीं क्या जाट पिछली बार के चुनावों की तरह बीजेपी की तरफ रूख करेंगे। इस तरह के कई सवाल हैं, जिनका जवाब 23 मई को मिलेगा, लेकिन इसका रूख गुरुवार शाम तक मालूम चल जाएगा। अगर आंकड़ों की बात करें तो पूरे उत्तर प्रदेश में दो फीसदी जाट मतदाता हैं जबकि पश्चिम उत्तर प्रदेश में 17 फीसदी जाट मतदाता है।

यही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दस जिलों में 40 फीसदी के करीब जाट मतदाता हैं। जो किसी भी का पार्टी को विजयश्री दिलाने की ताकत रखते हैं। वहीं इस क्षेत्र में 27 फीसदी मुस्लिम हैं। यानी अगर दोनों का एक तरफ वोट किसी भी दल को मिल जाए तो उसकी जीत सुनिश्चित है। अगर बात 2014 की करें तो, जाट वोटों की नाराजगी बीजेपी के सभी प्रतिद्वंदियों को मंहगी पड़ी थी। जिसके कारण बीजेपी यहां की सभी सीटों को जीतने में कामयाब रही। हालत ये थे कि पश्चिम उत्तर प्रदेश की पार्टी कहे जाने वाले आरएलडी भी लोकसभा चुनाव में सिफर में सिमट गयी। तो बसपा भी चुनाव में खाता नहीं खोल पायी। जबकि मायावती पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखती हैं।

हालात ये थे कि मुस्लिम मतदाताओं के बलबूते राज्य की सत्ता पर काबिज होने वाली एसपी चुनाव नहीं जीत पायी। अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी से एसपी-बीसएपी गठबंधन और कांग्रेस लड़ रहे हैं। कांग्रेस से पास यहां पर खोने को कुछ नहीं है तो मायावती, अखिलेश और अजित सिंह की राजनीति साख दांव पर लगी है। लेकिन दो सीटों को छोड़कर कांग्रेस यहां पर बीजेपी को नहीं, बल्कि गठबंधन को टक्कर दे रही है। कांग्रेस ने बागपत और मुज्जफरनगर में अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं। उसने चौधरी अजीत सिंह की पार्टी को यहां पर समर्थन दिया है।

जबकि अन्य छह सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटों सहारनपुर, कैराना, मुज्जफरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में चुनाव हो रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट मतदाताओं पर अजित सिंह की पकड़ मानी जाती है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह की हार ने कई सवाल खड़े कर दिए थे। लिहाजा इस बार अजित सिंह ने अपनी सीट बदल ली है और वह मुज्जफरनगर से चुनाव लड़ रहे हैं। जबकि उनके बेटे जयंत चौधरी बागपत से चुनाव लड़ रहे हैं।