लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सपा-बसपा के साथ गठबंधन न होने के कारण उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गयी है। वहीं अब सपा-बसपा का गठबंधन न केवल उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाएगा बल्कि अन्य राज्यों में कांग्रेस को इस गठबंधन से जूझना होगा। कांग्रेस को पटखनी देने के लिए सपा-बसपा अन्य राज्यों में एकजुट होकर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। खासतौर तौर से उन सीटों पर जहां उनकी वोटबैंक है। मसलन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में दोनों दल उन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे जहां पर पार्टी का थोड़ा बहुत जनाधार है।

इसके लिए इन दोनों दलों ने तैयारी कर ली है। मध्य प्रदेश में सपा और बसपा राज्य की कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रही है।जबकि राजस्थान में भी बसपा ने कांग्रेस को समर्थन दिया है। लेकिन बसपा प्रमुख मायावती कांग्रेस से खासी नाराज चल रही हैं। लिहाजा उन्होंने महाराष्ट्र में भी अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी कर ली है। बसपा और सपा कांग्रेस के उसी फार्मूले को अन्य राज्यों में लागू करेगी जो वह यूपी में लागू कर रही रही है। यानी वह कांग्रेस और भाजपा से आयातित नेताओं को टिकट देगी। इससे इन राज्यों में पार्टी के वोटबैंक बढ़ाने में मदद मिलेगी। क्योंकि जिस नेता को कांग्रेस या भाजपा से टिकट नहीं मिलेगा उन्हें रणनीति के तहत सपा और बसपा टिकट देगी।

महाराष्ट्र में सपा और बसपा ने गठजोड़ किया है और इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम और प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुज अगाड़ी के बीच गठबंधन हुआ है। हालांकि दोनों दलों के गठबंधन से सीधे नुकसान कांग्रेस को ही होगा। क्योंकि दोनों गठबंधन मुस्लिम वोटों को ही आपस में बांटेगे। यहीं नहीं सपा और बसपा ने लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। सपा और बसपा गठबंधन को लगता है कि कांग्रेस उनके वोटबैंक को प्रभावित करेगी। लिहाजा इन दोनों दलों ने अन्य राज्यों में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए गठबंधन को अमलीजामा पहनाया है।