नई दिल्ली- पंजाब और हरियाणा के सरकारी अधिकारियों का कहना है कि दीपावली के दौरान शुरु हुईं पराली जलाने की घटनायें अभी एक सप्ताह तक जारी रह सकती हैं।

सूत्रों का कहना है कि किसानों को बारिश के बाद गेहूं की फसल के लिए खेतों को जल्दी से तैयार करने को कहा गया था, पर धान की फसल में देरी के कारण यह स्थिति बनी है। पंजाब कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना कि पराली जलाने की घटनायें आगे जरुर कम होंगी, लेकिन प्रदूषण की समस्या तो हर साल बढ़ रही है।

अधिकारियों ने पराली के प्रबंधन हेतु वैकल्पिक तरीकों के उपयोग का प्रचार किया था, लेकिन कई परेशानियों के कारण वैकल्पिक तरीकों का उपयोग नहीं किया जा सका। मुल्चिंग, गाँठ बनाना, हैप्पी सीडर का उपयोग करना या उसका समावेश करने जैसी वैकल्पिक और मशीनी विधियों में प्रति एकड़ 2,500-5,500 रुपये लागत आती है।

हरियाणा के अधिकारीयों ने भी यही समस्या को उठाया है उनके अनुसार, "हरियाणा के कई किसानों ने चारे को जलाने के विभिन्न तरीकों को इस्तेमाल करने की कोशिश की थी, लेकिन भारी बारिश के कारण फसलें बर्बाद हो गईं, जिसके कारण उन्हें अपने खेतों को साफ़ करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल करना पड़ा।

पंजाब में इन घटनाओं की संख्या 11 नवंबर तक 42,126 दर्ज की गई, जबकि 2017 में इसी अवधि में यह 42,051 थी। हालांकि यह आंकड़े 2016 की तुलना से बेहतर हैं। 2016 में 76,096 घटनायें दर्ज की गई थीं, जो अब तक सबसे ज्यादा हैं।
अधिकारीयों का कहना है कि "हमारे अनुमानों के मुताबिक इन घटनाओं की संख्या में काफी कमी आई है, पिछले साल की तुलना में इसमें 20-22% की गिरावट दर्ज़ की गई है।  हमने चालू सीजन में कुल 30 लाख हेक्टेयर में से 14.5 लाख हेक्टेयर की पराली जला दी है।

 वहीं हरियाणा में अब तक 7,454 घटनाओं हुई हैं, जबकि 2017 में यह आंकड़ा 9,508 था। हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने बताया कि अभियान और आधुनिक चारा प्रबंधन तकनीकों की मदद से चारा जलाने के क्षेत्र में 20-25% तक कमी होने की उम्मीद है। कई किसानों ने हरे चारे के प्रबंधन के बारे में विचार किया था, लेकिन असमय हुई बारिश ने समस्या को बढ़ा दिया।