नई दिल्ली। अनुभवी नौकरशाह एवं पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार में विदेश मंत्रालय का महत्वपूर्ण प्रभार दिया गया है। जयशंकर को चीन एवं अमेरिका मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है और नए विदेश मंत्री के रूप में उन पर खास नजर होगी कि वह इन दोनों महत्वपूर्ण देशों के साथ पाकिस्तान के साथ निपटने में भारत के रूख को किस प्रकार से आगे बढ़ाते हैं । 

जयशंकर को यह महत्वपूर्ण दायित्व उस समय दिया गया है जब करीब 16 महीने पहले ही वे विदेश सेवा से सेवानिवृत हुए हैं। उनके समक्ष विश्व स्तर खासकर जी-20, शंघाई सहयोग संगठन और ब्रिक्स संगठन जैसे वैश्चिक मंचों पर भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने की उम्मीदों को अमल में लाने की जिम्मेदारी भी रहेगी। 

हालांकि, उनके नेतृत्व में अमेरिका, रूस, फ्रांस, जापान और यूरोपीय संघ तथा पड़ोसी देशों के साथ व्यापार एवं रक्षा संबंधों को और मजबूत बनाने पर मंत्रालय का मुख्य जोर रहेगा। जयशंकर के समक्ष एक अन्य चुनौती चीन के साथ भारत के संबंधों को और मजबूत बनाने पर होगी, जो 2017 के मध्य में डोकलाम विवाद के बाद प्रभावित हुए हैं। 

64 वर्षीय जयशंकर न तो राज्यसभा और न ही लोकसभा के सदस्य हैं। उनके नेतृत्व में मंत्रालय के अफ्रीकी महाद्वीप के साथ सहयोग प्रगाढ़ बनाने पर जोर देने की उम्मीद है जहां चीन तेजी से प्रभाव बढ़ा रहा है। 

नरेंद्र मोदी मंत्रिपरिषद में पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर को शामिल किया जाना चौंकाने वाला रहा। अनुभवी राजनयिक जयशंकर चीन और अमेरिका के साथ बातचीत में भारत के प्रतिनिधि भी रहे थे।

केंद्र में यूपीए-2 की सरकार थी और नए विदेश सचिव का चयन होने था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (2013) जयशंकर को विदेश सचिव बनाना चाहते थे, लेकिन वरिष्ठता क्रम में सुजाता सिंह के ऊपर होने की वजह से उनकी मंशा अधूरी रह गई थी। हालांकि ऐसी खबरें थीं कि तत्कालीन यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के दखल के चलते जयशंकर को नजरअंदाज किया गया। पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में जयशंकर को विदेश सचिव बनाया गया। उन्होंने जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव के तौर पर सेवाएं दीं। इस बार सुषमा स्वराज के सरकार में शामिल न होने पर जयशंकर को देश का नया विदेश मंत्री बना दिया गया।

देश के प्रमुख सामरिक विश्लेषकों में से एक दिवंगत के सुब्रमण्यम के पुत्र जयशंकर ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए बातचीत करने वाली भारतीय टीम के एक प्रमुख सदस्य थे।

इस समझौते के लिए 2005 में शुरूआत हुई थी और 2007 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली संप्रग सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। जनवरी 2015 में जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त किया गया था और सुजाता सिंह को हटाने के सरकार के फैसले के समय को लेकर विभिन्न तबकों ने तीखी प्रतिक्रिया जतायी थी।

जयशंकर अमेरिका और चीन में भारत के राजदूत के पदों पर भी काम कर चुके हैं। 1977 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी जयशंकर ने लद्दाख के देपसांग और डोकलाम गतिरोध के बाद चीन के साथ संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जयशंकर सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त और चेक गणराज्य में राजदूत पदों पर भी काम कर चुके हैं। 64 वर्षीय जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहे हैं। (इनपुट एजेंसी)