यह याचिका अमन बिरादरी के संस्थापक हर्ष मंदर की ओर से दायर की गई है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21 और अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक असम के हिरासत केंद्रों में रखे गए करीब 2000 बंदियों जे साथ निष्पक्ष, मानवीय और वैध उपचार को सुनिश्चित करने की मांग की गई है। याचिका में दिशा निर्देश देने की भी मांग की गई है। 

कहा गया है जो लोग विदेशी तय किए गए हैं और प्रत्यावर्तन की लंबित हिरासत में है, उन्हें शरणार्थियों के रूप में माना जाए। माता-पिता के हिरासत में होने पर जो बच्चे आजाद है, उनकी पीड़ा और दुर्दशा को इंगित करते हुए याचिकाकर्ता चाहते है कि उन्हें किशोर न्याय अधिनियम के तहत देखभाल और सुरक्षा की जरूरत मंद वाले बच्चों के रूप में माना जाए। जिला या उप-जिला स्तर पर स्थापित बाल कल्याण समितियो द्वारा संज्ञान लिया जाए। 

याचिकाकर्ता हर्ष मंदर ने रिट याचिका के माध्यम से कहा है कि वो वर्तमान में असम में 6 हिरासत केंद्रों/जेलों में रखे गए लोगो के मौलिक अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारो के उल्लंघन का निवारण करना चाहते हैं, जिन्हें या तो असम में विदेशियों के ट्रिब्यूनल द्वारा विदेशियों के रूप में घोषित किया गया है या बाद में अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के लिए हिरासत में लिया गया है। 

इस याचिका में कहा गया है कि अनिश्चितकालीन हिरासत में ऐसे लोगों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर और निर्वासन की प्रक्रिया को लेकर न्यायिक और राजनीतिक दृढ़ संकल्प की जरूरत है जिसके लिए याचिकाकर्ता तत्काल समाधान की मांग करता है।