शीर्ष अदालत में दायर याचिका के मुताबिक, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 के तहत इन राज्यों में हिंदू समुदाय के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें यह दर्जा नहीं दिया गया है।
अल्पसंख्यकों को परिभाषित करने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक आयोग से 3 महीने में कोई फैसला करने को कहा है। यह याचिका भाजपा नेता और पेशे से वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है। याचिका में देश के आठ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 के तहत इन राज्यों में हिंदू समुदाय के अल्पसंख्यक होने के बावजूद उन्हें यह दर्जा नहीं दिया गया है। उन्हें जबरदस्ती और मनमाने तरीके से इस अधिकार से वंचित किया गया। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ता ने 1993 में केंद्र सरकार की तरफ से जारी नोटिफिकेशन को भी असंवैधानिक करार देने की मांग की है। उसने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 23 अक्टूबर 1993 में नोटिफिकेशन जारी कर मुस्लिमों समेत अन्य समुदाय के लोगों को अल्पसंख्यकों के दर्जा दिया गया था। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों की मानें तो इन आठ राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक है, लेकिन उन्हें इन राज्यों में यह दर्जा अभी तक नहीं मिला है। याचिका में यह भी कहा गया है कि किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा सिर्फ उनकी जनसंख्या के आधार पर ही मिलना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कानून मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया है। याचिकाकर्ता के मुताबिक, आठ राज्यों में हिंदू बहुत कम है, बावजूद इसके उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया गया। 2011में हुई जनगणना के मुताबिक-लक्षद्वीप में 2.5%, मिजोरम 2.75%, नागालैंड 8.75%, मेघालय में 11.53%, जम्मू कश्मीर में 28.44%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, मणिपुर में 31.39% और पंजाब में 38.4% हिंदू है। इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिलने से उन्हें सुविधाएं नही मिल पा रही हैं।
Last Updated Feb 11, 2019, 4:53 PM IST