सुप्रीम कोर्ट में राफेल सौदे को चुनौती देने वाली याचिका खारिज हो गई है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि रक्षा सौदों में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए। अदालत के इस रुख के बाद कांग्रेस पार्टी के लिए मुंह छिपाने की भी जगह नहीं बची है, जो लगातार राफेल को मुद्दा बनाकर राजनीति कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट ने राफेल विमानों की खरीद को लेकर दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा, रक्षा सौदों में कोर्ट की दखलंदाजी ठीक नहीं है। कोर्ट ने रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने में कमर्शियल फेवर के कोई सबूत नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा की देश फाइटर एयरक्राफ्ट की तैयारियों में कमी को नहीं झेल सकता।
कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि ऐसे मामले में न्यायिक समीक्षा का नियम तय नहीं है। राफेल सौदे की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है। 36 विमान खरीदने के फैसले पर सवाल उठाना गलत है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा- कुछ लोगों की धारणा के आधार पर कोर्ट कोई आदेश नहीं दे सकता। इसलिए सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ ने यह फैसला सुनाया है। याचिकाओं में शीर्ष अदालत से राफेल सौदे की कीमत और उसके फायदों की जांच कराने की मांग की गई थी।
केंद्र ने सुनवाई में 36 राफेल लड़ाकू विमानों की कीमत और उसके फायदे के बारे में कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट सौपा था। बतादें कि याचिकाकर्ताओं ने राफेल डील की कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की गई थी। जिसपर सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा था कि हमने जानकारी साझा कर दी है। लेकिन रिव्यू एक्सपर्ट कमिटी समीक्षा कर सकती है। न्यायपालिका को इसकी समीक्षा करने का अधिकार नही है।
जिसके बाद कोर्ट ने एयरफोर्स के दो अधिकारियों को कोर्ट में तलब कर पूछा कि वायुसेना में सबसे नया विमान कौन सा आया है? तो अधिकारी ने कहा सुखोई 30, फिर कोर्ट ने पूछा क्या यह विमान 4th जेनरेशन का है? तो कहा गया 3.5 है।फिर कोर्ट ने पूछा मिराज वायुसेना में कब आया तो जवाब मिला 1985 में। तो मुख्य न्यायधीश ने पूछा जो नया विमान आना है वह किस जेनरेशन का है? तो कहा गया 5th जेनरेशन का। मुख्य न्यायाधीश ने यह सवाल एयर मार्शल वीआर चौधरी, कमांडर इन चीफ ईस्टर्न कमांड आलोक खोसला से पूछताछ किया था।
वहीं अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि हमें एक ऐसी फैक्ट्री चाहिए थी,जो भारत मे 108 एयर क्राफ्ट टाइम पर बना सके। क्योंकि एचएएल इस काम को पूरा करने में सक्षम नहीं था।जिसपर कोर्ट ने कहा कि डील में टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर की बात थी एजी ने कहा कि एचएएल के पास कुशल लोग नहीं थे।
वहीं रक्षा मंत्रालय के एडिशनल सेकेट्ररी ने कोर्ट को बताया था कि 2014 में जो बदलाव किए गए थे, वह 2015 में मंजूर हुए थे। अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा था कि आज हमारी वायुसेना काफी कमजोर है, अगर एयर फोर्स कारगिल के समय में मजबूत होती तो हमारे इतने जवान नही मारे गए होते। जिसपर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कारगिल 1999 में हुआ था और राफेल 2014 में आया है।
मुख्य न्यायधीश ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि कौन-कौन से देश है जो राफेल उड़ाते है। तो एजी ने कहा फ्रांस, कतर और मिस्र।
वहीं मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने कहा था कि इस डील के लिए रिलायंस को ही क्यों चुना गया। उसके पास तो जमीन तक नही है।
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि फैसला लेते समय काफी गड़बड़ी हुई है। सरकार ने अपने दस्तावेज में कहा है कि फ्रांस भारत में इसको लेकर बातचीत मई 2015 में शुरू हुई जबकि अप्रैल 2015 में पीएम ने डील का ऐलान कर दिया था। गौरतलब है कि भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिये 23 सिंतबर 2016 को 7.87 अरब यूरो यानी लगभग 59000 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए।
सौदा दोनों देशों की सरकारों के बीच हुआ है। भारतीय एयर फोर्स के अपग्रेडेशन के प्लान के तहत यह डील हुई है। इन जेट्स को भारत की दस्सॉ कंपनी ने तैयार किया है। विमान की आपूर्ति 2019 से होनी है। इस सौदे की जमीन अप्रैल 2015 में पीएम मोदी फ्रांस दौरे पर तैयार हुई थी।
Last Updated Dec 14, 2018, 12:45 PM IST