कॉलेजियम के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एस.के. कौल और दिल्ली हाइकोर्ट के पूर्व जस्टिस कैलाश गंभीर ने आपत्ति जाहिर की है। न्यायमूर्ति कौल ने कॉलेजियम द्वारा दो हाइकोर्ट के मुख्य न्यायधीशों को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाने की सिफारिश पर यू टर्न लेने और उनकी जगह अन्य दो जजो को सुप्रीम कोर्ट के जज बनाने पर आपत्ति जताई है।
न्यायमूर्ति एस.के. कौल ने राजस्थान हाइकोर्ट के सीजे नंदराजोग को नजरअंदाज किये जाने के खिलाफ पहले भी आपत्ति दर्ज कर चुके है। कॉलेजियम को लिखे पत्र में कौल ने कहा है कि नंदराजोग उन सभी जजों में सबसे सीनियर है, जिनके नामों पर विचार किया गया।
उन्होंने कहा कि नंदराजोग को नजरअंदाज करने से गलत संकेत जाएगा। वह सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए सर्वथा उपयुक्त है। कौल ने कहा कि कॉलेजियम ने माहेश्वरी और संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट जज बनाने की सिफारिश की है।
कॉलेजियम राजस्थान और दिल्ली हाइकोर्ट के मुख्य न्यायधीशों प्रदीप नंदराजोग और राजेंद्र मेनन को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश से पीछे हट गया है, और उनकी जगह कर्नाटक हाइकोर्ट के सीजे दिनेश महेश्वरी और दिल्ली हाइकोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट जज बनाने की सिफारिश की है। कौल नही चाहते है कि कॉलेजियम द्वारा लिए गये फैसले से कहीं से भी यह संकेत जाए कि ये सदस्यों के निजी पसंद से प्रभावित है।
कॉलेजियम के इस फैसले से दिल्ली हाइकोर्ट के पूर्व जज कैलाश गंभीर भी नाराज है। उन्होंने इसको लेकर राष्ट्पति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है। लिखे पत्र में कॉलेजियम की सिफारिशों को परंपरा का उल्लंघन कहा है। उन्होंने कहा है कि 32 न्यायाधीशों की वरिष्टता की अनदेखी की गई है। इससे उन न्यायाधीशों की विश्वसनीयता और काबिलियत पर सवालिया निशान लगता है।
जस्टिस खन्ना स्वर्गीय जस्टिस डी आर खन्ना के पुत्र और स्वर्गीय जस्टिस एच आर खन्ना के भतीजे है। कहा जा रहा है कि जस्टिस संजीव खन्ना के नाम की सिफारिश उनके महान ताऊ जस्टिस एच आर खन्ना के आदर्शों, सिद्धान्तों, न्यायिक दर्शन की छोड़ी गई विरासत और सबसे ज्यादा उनके बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में लिए गये साहसिक फैसले को श्रद्धांजलि है।
गौरतलब है कि 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता और जस्टिस मदन बी. लोकुर, जस्टिस ए. के सीकरी, जस्टिस एस. ए. बोबडे और जस्टिस एन. वी. रमन्ना की सदस्यता वाले कॉलेजियम कि बैठक हुई थी। बैठक में नंदराजोग और मेनन को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति की सिफारिश का फैसला हुआ। इस पर पांच जजो के दस्तखत भी हो गए थे।
बाद में सीजेआई को जब पता चला कि कॉलेजियम की सिफारिश राष्ट्रपति को भेजे जाने से पहले ही मीडिया में लीक हो गया तो वह नाराज हो गई, बाद में सीजेआई ने नामों पर पुनर्विचार के लिए 5 और 6 जनवरी को कॉलेजियम की बैठक बुलाई। लेकिन पहले बैठक में शामिल मदन बी लोकुर रिटायर्ड हो गए, और उनकी जगह जस्टिस अरुण मिश्र पैनल में आ गई।
बैठक में नंदराजोग के कुछ फैसले पर विचार किया गया। जिसमें नंदराजोग ने एक फैसले में अपनी गलती मानी थी। जिस फैसले पर कॉलेजियम में चर्चा हुई वह फैसला नंदराजोग ने दिल्ली हाइकोर्ट में जस्टिस रहते दिया था।उसके बाद कॉलेजियम ने उनके जगह पर महेश्वरी को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने का फैसला लिया।
Last Updated Jan 16, 2019, 1:47 PM IST