चीफ जस्टिस ने हाल ही में जस्टिस एनवी रमन्ना, मोहन एम शांतनागोदर और इंदिरा बनर्जी की बेंच का गठन किया था। पिछली सुनवाई के दौरान जस्टिस एके सीकरी ने खुद को अपने आप को अलग कर लिया था। 

इससे पहले मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति को लेकर उच्च स्तरीय समिति की बैठक में भाग ले रहे है, इसलिए वे इस मामले में सुनवाई के लिए पीठ का हिस्सा नही हो सकते है।

 गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में सरकार पारदर्शिता का पालन नही कर रही है। 

याचिका में कहा गया है कि नागेश्वर राव की नियुक्ति उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर नही की गई है, जैसा कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत अनिवार्य है। 10 जनवरी 2019 के आदेश में कहा गया है कि मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने नागेश्वर राव को पहले की व्यवस्था के मुताबिक नियुक्त करने की मंजूरी दी है। 

हालांकि पहले की व्यवस्था यानी 23 अक्टूबर 2018 के आदेश ने उन्हें अंतरिम सीबीआई निदेशक बनाया था और 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा मामले में इस आदेश को रद्द कर दिया था। हालांकि सरकार ने खारिज किए गए आदेश पर सीबीआई के नागेश्वर राव को एक बार फिर अंतरिम निदेशक नियुक्त कर दिया। 

याचिका में कहा गया है कि सरकार उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों के सीबीआई निदेशक का प्रभार नही दे सकती। इसलिए सरकार द्वारा उन्हें सीबीआई निदेशक का पदभार देने का आदेश गैर कानूनी है और डीएसपीई की धारा 4a के तहत नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ है। 

याचिका में राव की नियुक्ति को रद्द करने की मांग के अलावा सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की मांग की गई है।