आरोपियों ने सर्वोच्च न्यायालय में जमानत की गुहार लगाई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट से मिली राहत को भी रद्द कर दिया है। इन आरोपियों के नाम हैं वकील सुरेंद्र गाडलिंग, नागपुर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर शोमा सेन, दलित कार्यकर्ता सुधीर धवले, कार्यकर्ता महेश राउत और केरल निवासी रोना विल्सन। 
इनको जून में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। जिसके बाद इन्होंने सुप्रीम कोर्ट से जमानत की गुहार लगाई थी। 

इन सभी पर संदिग्ध माओवादियों के साथ संपर्क रखने का आरोप है। जिसकी वजह से इन सभी को गिरफ्तार किया गया था। पुणे में साल 2017 के 31 दिसंबर को एलगार परिषद सम्मेलन के सिलसिले में इन सभी लोगों को दफ्तर और घरों पर छापेमारी के बाद गिरफ्तार किया गया था। 

महाराष्ट्र सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था। पुलिस के मुताबिक अगले दिन भीमा कोरेगांव हिंसा हुई। महाराष्ट्र सरकार ने 25 अक्टूबर को बंबई हाइकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वकील निशांत काटनेश्वर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि अगर हाइकोर्ट के फैसले पर रोक नही लगाया गया तो हिंसा के मामले में आरोपी तय समय मे आरोप पत्र दायर न हो पाने के चलते जमानत के हकदार होंगे।

क्योंकि गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम के तहत गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीत्तर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होता है। अभियोजन हालांकि निचली अदालत में विलंब की वजह बताते हुए अतिरिक्त समय मांग सकता है। अगर अदालत संतुष्ट होती है तो वह आरोप पत्र दायर करने के लिए 90 दिन का अतिरिक्त समय दे सकती है।